नवीन श्रीवास्तव
इंचियोन एशियाई खेल में कांस्य पदक स्वीकार करने से इनकार करने वाली देश की महिला मुक्केबाज लैशराम सरिता देवी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी एसोसिएशन (एआइबीए) ने उन्हें अस्थायी तौर पर निलंबित कर दुखद व दुर्भाग्यपूर्ण कदम उठाया है. न सिर्फ सरिता उनके कोचों व इंचियोन एशियाड में भारत के दल प्रमुख पर भी इसकी गाज गिरी है.
इसकी जितनी भी निंदा की जाये कम है. ऐसा कर उसने अदूरदर्शिता का परिचय दिया है. सरिता देवी को ऐसे जुर्म की सजा दी गयी है जो उन्होंने किया ही नहीं. नाइंसाफी तो उनके साथ की गयी. उन्होंने तो रेफरी के एक विवादास्पद फैसले का बस विरोध किया था. जैसा कि हम सभी जानते हैं, सरिता देवी रेफरी के खराब फैसले का शिकार बनीं. हम सबने भी अपने टीवी सेट पर उस बाउट को देखा जिसमें सरिता अपने प्रतिद्वंद्वी पर भारी पड़ रही थीं. पर रेफरी ने दक्षिण कोरिया की मुक्केबाज जिना पार्क को विजेता घोषित कर दिया. इसकी वजह से जिना रजत पदक विजेता बन गयी. रेफरी के इस एक फैसले ने सरिता के साथ-साथ करोड़ों हिंदुस्तानियों का दिल तोड़ दिया. यह हम सबके लिए दुखद था. कोई भी खेल या देश प्रेमी इसे स्वीकार नहीं कर सकता था. ऐसे में जिसके साथ नाइंसाफी हुई वह इसे कैसे स्वीकार कर सकता था. वह तो अपने देश का प्रतिनिधित्व कर रही थी. करोड़ों देशवासी उसकी तरफ नजरें गड़ाये बैठे थे. उसने अपने साथ हुई नाइंसाफी का प्रतीकात्मक विरोध ही तो किया था. एआइबीए को रेफरी की गलतियां नजर नहीं आयीं तो जले पर नमक छिड़कने के लिए सरिता को ही निशाने पर ले लिया. भारत सरकार को इस मामले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाना चाहिये. खेल मंत्रलय, भारतीय मुक्केबाजी संघ और सभी संबंधित अधिकारियों को इस मसले को अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी एसोसिएशन के समक्ष उठाना चाहिये ताकि सरिता पर से निलंबन वापस लिया जा सके. लंदन ओलिंपिक के दौरान भी ऐसे वाकयात सामने आये थे. यह सोचना होगा कि हमारे साथ ही सौतेला व्यवहार क्यों किया जाता है. इसके लिए सभी खेल संघों को भी गंभीरता से आगे आना चाहिये.
इंचियोन एशियाई खेल में कांस्य पदक स्वीकार करने से इनकार करने वाली देश की महिला मुक्केबाज लैशराम सरिता देवी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी एसोसिएशन (एआइबीए) ने उन्हें अस्थायी तौर पर निलंबित कर दुखद व दुर्भाग्यपूर्ण कदम उठाया है. न सिर्फ सरिता उनके कोचों व इंचियोन एशियाड में भारत के दल प्रमुख पर भी इसकी गाज गिरी है.
इसकी जितनी भी निंदा की जाये कम है. ऐसा कर उसने अदूरदर्शिता का परिचय दिया है. सरिता देवी को ऐसे जुर्म की सजा दी गयी है जो उन्होंने किया ही नहीं. नाइंसाफी तो उनके साथ की गयी. उन्होंने तो रेफरी के एक विवादास्पद फैसले का बस विरोध किया था. जैसा कि हम सभी जानते हैं, सरिता देवी रेफरी के खराब फैसले का शिकार बनीं. हम सबने भी अपने टीवी सेट पर उस बाउट को देखा जिसमें सरिता अपने प्रतिद्वंद्वी पर भारी पड़ रही थीं. पर रेफरी ने दक्षिण कोरिया की मुक्केबाज जिना पार्क को विजेता घोषित कर दिया. इसकी वजह से जिना रजत पदक विजेता बन गयी. रेफरी के इस एक फैसले ने सरिता के साथ-साथ करोड़ों हिंदुस्तानियों का दिल तोड़ दिया. यह हम सबके लिए दुखद था. कोई भी खेल या देश प्रेमी इसे स्वीकार नहीं कर सकता था. ऐसे में जिसके साथ नाइंसाफी हुई वह इसे कैसे स्वीकार कर सकता था. वह तो अपने देश का प्रतिनिधित्व कर रही थी. करोड़ों देशवासी उसकी तरफ नजरें गड़ाये बैठे थे. उसने अपने साथ हुई नाइंसाफी का प्रतीकात्मक विरोध ही तो किया था. एआइबीए को रेफरी की गलतियां नजर नहीं आयीं तो जले पर नमक छिड़कने के लिए सरिता को ही निशाने पर ले लिया. भारत सरकार को इस मामले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाना चाहिये. खेल मंत्रलय, भारतीय मुक्केबाजी संघ और सभी संबंधित अधिकारियों को इस मसले को अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी एसोसिएशन के समक्ष उठाना चाहिये ताकि सरिता पर से निलंबन वापस लिया जा सके. लंदन ओलिंपिक के दौरान भी ऐसे वाकयात सामने आये थे. यह सोचना होगा कि हमारे साथ ही सौतेला व्यवहार क्यों किया जाता है. इसके लिए सभी खेल संघों को भी गंभीरता से आगे आना चाहिये.