राहुल मिश्र
प्रभात खबर, कोलकाता

याद है आपको, आखिरी बार तारों से भरा आसमान कब देखा था? चांदनी रात को कभी महसूस भी किया कि नहीं ? सूर्योदय-सूर्यास्त को कब महसूस किया? आसमान में इंद्रधनुष कब देखा था ?  कब धूप में हुई बारिश में भीगा? कोयल के बोल कब सुने? पेड़ पर घोंसला और उसमें बच्चों को दाना खिलाते पक्षी को कभी देखा? ऐसे सवालों के सामने हम शहर-महानगर में रहनेवाले लोग दुखी हो जाते हैं कि कैसे हम प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं. उसे महसूस नहीं कर पा रहे हैं. पिछले दिनों शिक्षक दिवस पर जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बच्चों से बात कर रहे थे तो असम के एक बच्चे ने उनसे जलवायु परिवर्तन को रोकने व पर्यावरण को बचाने के उपाय पूछे  थे. जवाब में उन्होंने कहा था : अब मेरे मन में एक सवाल है कि सचमुच में क्या चेंज हुआ है. हम अपने आप से पूछें. आपने देखा होगा कि हमारे गांव में जो उम्रदराज लोग होते हैं ना 70-80-85-90 के लोग सर्दियों में आप देखेंगे तो वह कहते हैं कि पिछली बार से इस बार सर्दी ज्यादा है. एक्च्यूली सर्दी ज्यादा नहीं है उनकी उम्र बढ़ने के कारण उनकी सहने की शक्ति कम हो गयी है. इसीलिए उनको सर्दी ज्यादा महसूस होती है. वैसे ही ये क्लाइमेट चेंज नहीं हुआ है, हम चेंज हो गये हैं, हम बदल गये हैं, हमारी आदतें बदल गयी हैं, हमारी आदतें बिगड़ गयी हैं और उसके कारण पूरे पर्यावरण का हमने नुकसान किया है. अगर हम बदल जायें तो वह तो बदलने के लिए तैयार ही है. ईश्वर ने ऐसी व्यवस्था रखी है कि संतुलन तुरंत हो जाता है लेकिन उसकी पहली शर्त है कि मनुष्य प्रकृति से संघर्ष नहीं करें मनुष्य प्रकृति से प्रेम करें, पानी हो, वायु हो, पौधे हों. हरेक के साथ. इसीलिए हमारे शास्त्रों में तो पौधे को परमात्मा कहा गया, नदी को माता कहा गया, लेकिन जब से हम यह भूल गये, गंगा भी मैली हो गयी. ...हम बालक होते हैं तो हमारी मम्मी हमें क्या कहती है कि ये चंदा है ना ये तेरा मामा है ये सूरज तेरा दादा है. ये चीजें हमें सहज रूप से पर्यावरण की शिक्षा देने के लिए, हमारे सहज जीवन में थी, लेकिन पता नहीं इतना बदलाव आया कि सब बुरा है, बुरा है, इतना मार-ठोक कर हमारे दिमाग में भर दिया गया है. और उसी के कारण हमारी यह हालत हो गयी है.
उन्होंने नागपुर का उदाहरण देते हुए कहा था कि वहां पूर्णिमा की रात को जब 2-3 घंटे स्ट्रीट लाइट बंद कर दी जाती हैं, तो सड़कों पर मेले जैसा माहौल हो जाता है. लोग भी अपने घरों की बिजली बंद कर देते हैं, ऐसे में वे लोग चांदनी का आनंद ले पाते हैं. जो अपने आप में शहरी लोगों के लिए प्रकृति को महसूस करने का अनोखा तरीका है. ऐसे में बिजली तो बचेगी ही, हमें प्रकृति का सुखद एहसास भी होगा. जरा सोचिये कि हमारे शहर में भी ऐसा हो तो कितना मजा आयेगा, जब हम रात को खुले आसमान के नीचे चांदनी की रोशनी में सूई में धागा डाल रहे होंगे. 
 
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