एचआइवी पीड़ित तीन महिलाएं दूसरों के लिए बनीं मिसाल

अचानक मेरे आस पड़ोस में रहनेवाले लोगों ने मुझसे बात करनी बंद कर दी. जिस सहेली का मेरे घर में रोज आना-जाना था, वह मुङो नजरअंदाज करने लगी. नहीं समझ पा रही थी कि मेरी क्या गलती है? .. मुङो एड्स हुआ है, पर इसमें मेरी गलती नहीं है. लोग ऐसा व्यवहार करने लगे जैसे मुङो छुआछूत की बीमारी हो. क्या हमारे प्रति समाज का नजरिया बदल पायेगा? इतना कहते हुए कुछ पल के लिए सोनाली खामोश हो गयी. फिर अचानक वह खड़ी हो गयी और कहा एड्स पीड़ितों को अपनों की सहानुभूति की जरूरत है. समाज को जागरूक करना है जब तक सांस चल रही है.

शिव कुमार राउत, कोलकाता

सोनाली जैसी न जाने कितनी ही महिलाएं हैं, जो एड्स की शिकार हैं. एड्स को लेकर सरकार चाहे जितने भी जागरूकता अभियान चलाये, लेकिन आज भी एचआइवी पॉजिटिव लोगों को देखने का नजरिया नहीं बदला. आज भी देश में एचआइवी को छुआछूत का रोग समझा जाता है. एड्स पीड़ितों के साथ अमानवीय बर्ताव के किस्से आम गये हैं. पीड़ितों की मदद करने के बजाय उन्हें परिवार-समाज से निकाल दिया जाता है. यहां तक कि उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में एड्स से मां-पिता की मौत के बाद पांच मासूम बच्चों को वर्षो कब्रिस्तान में रहने को मजबूर किया गया. एड्स पीड़ित व उनके परिवार के साथ उपेक्षा व अमानवीयता के ऐसे कई उदाहरण हैं.
ऐसी ही परिस्थितियों का सामना सोनाली के साथ सोमा और दीपा (बदला हुआ नाम) भी कर चुकी हैं. एचआइवी पॉजिटिव होने के कारण समाज के साथ उनके अपने ही परिजनों ने ही उन्हें ठुकरा दिया. जिस एचआइवी के कारण उन्हें समाज ने ठुकराया उसी कमजोरी को तीनों ने अपनी ताकत बना ली. तीनों एचआइवी की चपेट में आनेवाली महिलाओं का काउंसेलिंग करती हैं. ये महिलाएं दुर्बार महिला समिति के साथ मिल कर विशेष कर महानगर के सोनागाछी रेड लाइट इलाके में यौनकर्मियों के लिए कार्य करती हैं.

पति को एड्स था, शादी के बाद मुङो भी हो गया

पूर्व मेदिनीपुर के एगरा की रहनेवाली सोनाली कहती हैं : 1998 में मेरी शादी पड़ोस के गांव के एक लड़के से हुई. मेरा पति माध्यमिक पास था. वह मुंबई में जड़ी लगाने का काम करता था. वहीं वह एचआइवी का शिकार हो गया था. शादी के बाद मैं भी इस बीमारी की चपेट में आ गयी. बीमारी के कारण 2003 के मार्च में पति की मौत हो गयी. उसकी मौत के बाद ससुरालवाले बेटे की मौत के लिए मुङो ही जिम्मेदार समझने लगे. वे लोग मुझ पर जुल्म ढ़ाने का एक भी मौका नहीं छोड़ते.
तंग आ कर मैं मायके चली गयी, लेकिन पिता की मौत के बाद बिल्कुल अकेली पड़ गयी. रोग के इलाज के दौरान दुॉर्बार के बारे में पता चला. फिर नवंबर, 2004 में कोलकाता चली आयी. दुर्बार के साथ मिल कर काम करने में जुट गयी. इसी दौरान एचआइवी पॉजिटिव से पीड़ित एक लड़के से शादी कर ली. हम लोग काफी खुश हैं. फिलहाल मैं दुर्बार की ओर से चलाये जा रहे ऊषा बैंक में सेक्रेटरी के  पद पर हूं. यह बैंक यौन कर्मियों के लिए चलायी जाती है.
 मेरा एड्स के शिकार लोगों के लिए यही कहना है. अगर आपको पता चल गया है कि आप इस बीमारी की चपेट में हैं, तो निराश होकर लोगों की उपेक्षाएं ङोलने की बजाय बची जिंदगी को खुल कर जीना चाहिए. वहीं समाज के लोगों को भी समझना चाहिए कि एचआइवी छुआछूत की बीमारी नहीं है. इसीलिए बीमार को जीने के लिए प्रोत्साहित करें, न कि उनकी बची जिंदगी की आह के लिए जिम्मेदार.

समाज ने बनाया यौनकर्मी मैंने बनाया चैंपियन बेटा

दीघा की रहनेवाली सोमा यौन कर्मी रह चुकी है. सोमा ने अपनी आपबीती सुनायी कि कैसे वह देह व्यापार में आयी और जानलेवा बीमारी की शिकार हुई. वह कहती है : मेरी शादी एक अधेड़ उम्र के  पुरुष से कर दी गयी थी, जो पहले से शादीशुदा था. शादी के कुछ महीने मजे करने के बाद उसने मुङो छोड़ दिया. मेरे माता-पिता बहुत गरीब थे. इसीलिए मुङो घर पर बिठा कर खिलाना उनके वश में नहीं था. मैं मौसी के साथ घरों में नौकरानी का काम करने के लिए कोलकाता चली आयी. लेकिन मौसी ने धोखे से मुङो सोनागाछी में बेच दिया. जहां मुङो देह व्यापार करने के लिए मजबूर किया गया. लाचारी व बेबसी की हालत में मेरा शरीर को मदरें का हवस मिटाने लगा. 2008 में पता चला कि मुङो एड्स हो गया है. मेरा 18 साल का बेटा है, जो बहुत अच्छा फुटबॉल खेलता है. वह हाल ही में फुटबॉल खेलने पोलैंड गया था. मैंने देह व्यापार छोड़ दिया है, अब दुर्बार के साथ जुड़ कर सम्मान का जीवनयापन कर रही हूं. बेटा मुङो बहुत सम्मान और प्यार करता है. मुङो खुशी है कि यौन कर्मी होते हुए भी अपने बेटे को समाज में सम्मान से जीने लायक बना सकी.

खुदकुशी से रोकनेवाले ने धकेल दिया नर्क में

दीपा भी यौनकर्मी रह चुकी है. वह कहती है : मेरी शादी पागल से कर दी गयी थी. उसके साथ रहना मुश्किल था. उसे छोड़ कर मायके चली आयी तो लोग ताने देने लगे. अकेले रोती रहती थी. एक दिन रेलवे लाइन पर आत्महत्या की ठान ली. पटरी पर खड़ी थी कि ट्रेन आने से पहले एक व्यक्ति ने रोक लिया. लेकिन दुर्भाग्य की बात देखिये कि जिसने मरने से बचाया, उसी ने मुङो नरक में धकेल दिया. जान बचाने वाला व्यक्ति पेशे से देह दलाल था. वह मुङो अपने साथ सोनागाछी ले आया. यहां देह व्यापार की दलदल में धकेल दिया. लोगों से संबंध बनाते-बनाते 2005 में एचआइवी ने मुङो अपना शिकार बनाया. मेरी दो संतान हैं. एक लड़का और एक लड़की. दोनों की शादी हो चुकी है और सुखमय जीवन यापन कर रहे हैं. मैं दुर्बार के साथ मिल कर एड्स पीड़ित होने वाले लोगों को जागरूक करती हूं और ऊषा बैंक में अध्यक्ष के पद पर कार्य करती हूं. दुर्बार ने हमारी नरक हो चुकी जिंदगी को सहारा दिया. अब हम अपना उदाहरण देकर दूसरे एचआइवी पीड़ितों में जीने की उम्मीद बढ़ा रहे हैं.
 
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