ये खुशमिजाजी, खुलापन,
जिंदा रखता है बालपन ।
ये खिलखिलाना, चहक जाना,
नहीं चाहता इन्हें मारना ।
ये अहम, इज्जत, अहमियत,
बिना मोहब्बत बेकीमत ।
लोगों का क्या, कुछ तो कहेंगे ही,
उनकी बातों से क्या दिल दुखाना ।
गंभीरता के घेरे में गम घेरता है,
मुखौटे चढ़ा कर क्या रहना ।
दिल की बात जुबान पर आये,
दबा कर क्यों बोझ बढ़ाना ।
मन है इश्वर, मन ही अल्लाह,
मन मार कर क्या जीना ।
-राहुल मिश्रा
जिंदा रखता है बालपन ।
ये खिलखिलाना, चहक जाना,
नहीं चाहता इन्हें मारना ।
ये अहम, इज्जत, अहमियत,
बिना मोहब्बत बेकीमत ।
लोगों का क्या, कुछ तो कहेंगे ही,
उनकी बातों से क्या दिल दुखाना ।
गंभीरता के घेरे में गम घेरता है,
मुखौटे चढ़ा कर क्या रहना ।
दिल की बात जुबान पर आये,
दबा कर क्यों बोझ बढ़ाना ।
मन है इश्वर, मन ही अल्लाह,
मन मार कर क्या जीना ।
-राहुल मिश्रा