आस्था सबल बनाती, तो अंधविश्वास कमजोर

आस्था एक इन्सान को सबल बनाती है तो अंधविश्वास कमजोर करता है | आस्था एक साधारण इन्सान को आत्मविश्वास प्रदान करती है | अपने परिवार, समाज व् देश पर आस्था होना आवश्यक है | इसी प्रकार एक साधारण इन्सान को अपना आत्मबल बनाये रखने के लिए ईश्वर,भगवान, अल्लाह व् वाहे गुरु आदि में आस्था रखनी पड़ती है |
ऐसे ही इंसानों को हम आस्तिक कहते है और जो इनमे वे जो विश्वास नहीं रखता उसे नास्तिक कहा जाता है | नास्तिक होना एक साधारण इन्सान के वश से बाहर है , क्योंकि इसके लिए बहुत बड़ा जिगर चाहिए या बहुत ही निर्भीक होने की आवश्यकता है |

भगत सिहं नास्तिक थे 

शहीद-ए-आज़म भगत सिंह नास्तिक थे | उन्होंने इस सच्चाई को सहृदय स्वीकार किया तथा अपने को नास्तिक होने के कारणों को बहुत ही स्पष्ट तरीके से अपने लेख - ''मै नास्तिक क्यों?'' में वर्णन किया है | हर कोई भगत सिंह तो बनना चाहता है , लेकिन हमारे जैसे साधारण लोगों के लिए उनके आदर्शों तथा नीति पर चलना संभव नहीं | आम जीवन में देखा गया है कि आस्तिक व् नास्तिक इंसानों के कार्य समान रूप से होते रहते हैं, इसीलिए हम कह सकते हैं कि आस्तिकता अंधविश्वास के बहुत करीब है | इसलिए आस्था व अंधविश्वास में भेद करना बड़े जोखिम का काम है | वास्तव में अंधविश्वास कायर इंसानों का हथियार होता है , जो आम तौर पर अच्छाई का श्रेय स्वयं लेते हुए बुरे का दोषारोपण भगवान के मत्थे मंढते रहते है | अंधविश्वास एक इंसान को ही नहीं , पूरे समाज व देश को खोखला करता रहता है | 

 आस्था की हद है, पर अंधविश्वास की सीमा नहीं

आस्था को किसी हद तक सीमा में बांधा जा सकता है , लेकिन अंधविश्वास कि कोई सीमा नहीं होती | आस्था और अंधविश्वास ने पूरे संसार को अपने आगोश में जकड़ रखा है, लेकिन जिस प्रकार का अंधविश्वास हमारे देश में रहा है , ऐसा शायद कहीं भी नहीं | जितना अंधविश्वास हमारे सभ्य कहे जाने वाले समाज में है , ऐसा हमारे आदिवासी कहे जाने वाले क्षेत्रो में भी नहीं | जितना अंधविश्वास धनाडय वर्ग में है , वैसा गरीबो में नहीं | जितना अंधविश्वास शहरो में है उतना गाँव में नहीं | शहरो में हर कार्य का श्री गणेश हिन्दू समाज देवी देवताओं की मूर्तियों को अगरबत्तियो का सुगंधित धुआ सुंघा कर आरम्भ करते है | और यदि किसी को एक छींक भी आ जाये तो पूरे दिन के कार्यक्रम बदल जाते हैं | यह अंधविश्वास की पराकाष्ठा है |

अब इतिहास पर जरा गौर करें 

हम इतिहास पर गौर करें, तो पायेंगे कि हमारे देश की लगभग एक हज़ार साल की गुलामी का मुख्य कारण अंधविश्वास था , न कि आपसी फूट | आपसी फूट का रोना अक्सर रोया जाता है , जो दूसरों के कारण थी लेकिन इन फूट डालने वालो का कभी जिक्र नहीं किया जाता | सन 712 में सिंध की सबसे बड़ी रियासत आलौर थी , जिस पर चर्चित ब्राह्मण राजा चच के पौत्र दाहिर का शासन था | इस रियासत पर अरब के खलिफे इज्जाम ने अपने बाईस वर्षीय साले बिन- कासिम को एक बड़ी सेना देकर आक्रमण के लिए भेजा , वहीँ आलौर के इस लड़ाई के मैदान पर आठ दिन एक घमासान लड़ाई हुई और अंत में राजा दाहिर का पलड़ा भारी चल रहा था | इसी लड़ाई के मैदान के किनारे पर एक भव्य मंदिर पर केसरिया झंडा लहराता रहता था | आठवें दिन की लड़ाई की समाप्ति पर रात को इसी मंदिर के पुजारी मनसुख और हरनंद राय रात के अंधेरे में पैसे के लालच में कासिम से मिले और उसे उसकी विजय की एक युक्ति बतायी कि वे मंदिर का ध्वज उतार देंगे तो अगले दिन हिन्दू सेना भाग खड़ी होगी | उन्होंने वैसा ही किया | जब प्रात: हिन्दू सेना को मंदिर का ध्वज नहीं दिखाई दिया तो अपनी हार मान कर भाग खड़ी हुई | नतीज़न राजा दाहिर का सर कलम कर दिया गया और फिर इसी दाहिर राजा के ब्राह्मण मंत्री ज्ञानबुध ने धन के लालच में कासिम को गुप्त खजाने का रास्ता बताया जो 40 बड़े देगों में उस समय 72 करोड़ के सोना-चांदी तथा हीरे जवाहरात का खज़ाना मिला, लेकिन इस मंत्री और पुजारियों को कासिम ने बाद में मौत की सजा दी | लेकिन जो भी हो , इस लड़ाई की हार का कारण एक मात्र अंधविश्वास था और यह लड़ाई भारत वर्ष की गुलामी की पहली चकबंदी साबित हुई |

मोहम्मद गजनी के सोमनाथ का खजाना लूटने का किस्सा 

 सन 1026 में मोहम्मद गजनी गुजरात के सोमनाथ मंदिर को लूटने के लिए आया तो उसके एक ब्राह्मण सेनापति तिलक ने उसे पूरा रास्ता दिखलाया | उस समय गुजरात पर राजा भीम देव का राज था | राजा नाम से भीम देव था , लेकिन वह एक भीरु और अन्धविश्वासी था , जिसने गजनी को मंदिर न लूटने की प्रार्थना की और बदले में धन दौलत देने की पेशकश की | जिस पर गजनी ने कहा की वह मूर्ति भंजक है , जिसका फैसला उसकी तलवार करती है | इस पर मंदिर के मुख्य पुजारी ने राजा से कहा की मंदिर में प्रवेश करते ही शिवलिंग की शक्ति से गजनी की सेना अंधी हो जायेगी | लेकिन वही हुआ, जो अंधविश्वास में होता है कि गजनी ने मंदिर में स्थापित आठ फूट ऊंचे शिवलिंग को तोड़ कर उस से निकले सोना चांदी , हीरे जवाहरात आदि लूट कर पूरे मंदिर को जी भर कर लूटा तथा जाते समय उस मंदिर के किवाड़ भी ऊँटो पर लाध ले गया | यह सारा कारनामा अंधविश्वास का था, जो गजनी का एक बाल भी बांका नहीं कर पाया | यह भारत वर्ष कि गुलामी कि दूसरी चकबंदी थी |
ऐसे बहुत से ऐतिहासिक उदाहरण दिए जा सकते है , जिसके कारण हमारा देश गुलाम हुआ और यहाँ कि जनता हजारों साल तक लुटती- पिटती रही | इसी अंधविश्वास के चलते देश के विभिन्न मंदिरों में अपार सोना चांदी व् हीरे जवाहरात इकट्ठे होते रहे जिसने विदेशियों को ललचाया और भारत पर एक के बाद एक ताबड़ तोड़ हमले होते रहे और पूरा भारत वर्ष गुलाम होता चला गया | इसी अंधविश्वास का वर्तमान में जीता जागता प्रमाण केरला का श्री पदमनाभ्स्वामी मंदिर है, जिसमे अरबो रुपयों कि सम्पति पर पुजारी कुंडली मारे बैठे रहे |

अंधविश्वास को मिल रहा शिक्षा से भी अधिक प्रचार

जिस गति से हमारे देश में शिक्षा का प्रचार हो रहा है , उससे अधिक गति से देश में अंधविश्वास फ़ैल रहा है | इसी का परिणाम है कि आज देश में डेरे तथा तथाकथित भगवान् फल-फुल रहे है , जिनको सफेदपोशो का पूरा सरंक्षण प्राप्त है , क्यों कि ये डेरे इनके वोट बैंक भी बन चुके है | नतीज़न , देश कि अन्धविश्वासी जनता इधर से उधर शान्ति , समृधि एवं गुरुनामी के चक्कर में सड़क दुर्घटनाओ में रोजाना मर रही है | पाखंड और गुरुडम फल-फुल रहा है और देश को गर्त कि तरफ धकेल रहा है | समाचार पत्र एवं टीवी वही परोस रहे हैं , जिस से उनके आमदनी बड़े और देश जाए भाड़ में |

भ्रष्टाचार का है अंधविश्वास से संबंध

जहाँ तक भ्रष्टाचार की बात है , उसका मूल कारण अंधविश्वास ही है | क्योंकि जहाँ प्रति-दिन करोड़ो रूपये देवी-देवताओं को मंदिर में इस मांग कि शर्त पर चढ़ाए जा रहे है कि देवी देवता उनकी मनोकामना पूरी करेंगे | कहने का अर्थ है कि पहले देवताओं को रिश्वत का लालच दो और फिर उनसे अपना मनचाहा कार्य करवाओ | कोई भी कार्य अपने समय के अनुसार होता ही है , लेकिन पूरा श्रेय देवी देवताओं को जाता है और इसी का उदाहरण है कि तिरुपति मंदिर में एक दिन अर्थात प्रथम अप्रैल 2012 को 73 लाख रूपये का चढ़ावा था | जब हम भगवान और देवी देवताओ को इस प्रकार का लालच देकर रिश्वत देते है और वे सहर्ष स्वीकार करते है , तो फिर मनुष्य को रिश्वत देने-लेने में कोनसा दोष है ? और फिर यही लोग कहते है कि इंसान को तो भगवान् ने ही बनाया है | इसीलिए भ्रष्टाचार स्पष्ट तौर पर अंधविश्वास से जुड़ा है , इसलिए अन्ना हजारे और रामदेव से प्रार्थना करते हैं कि पहले ये इस देश से अंधविश्वास को भगाए , भ्रष्टाचार तो फिर अपने आप भाग जाएगा तथा साथ साथ उनसे यह भी प्रार्थना करते है कि जब जब जाट आरक्षण आन्दोलन कि बात आती है , तो यह अपने आन्दोलन को खड़ा करके जाट आन्दोलन को पीछे धकेलने का कार्य न करे | इसके पीछे क्या षड्यंत्र हो सकता है , यह बात तो वही जाने , लेकिन ये दोनों महापुरुष पिछड़ी जाति से संबन्ध रखते हैं |

इसी प्रकार हम जानते है कि मूल समस्या अधिक जनसँख्या है , जो अधिकतर समस्याओ कि जड़ है , का कारण भी अंधविश्वास ही है क्यों कि हम मानकर चलते है कि भगवान् ने जिसको चोंच दी है , उसे चुग्गा भी वही देगा |
 
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