-जिंदगी के 25 वर्षों तक नहीं बोल पाने वाला बना रेडियो जाकी
राहुल मिश्रा, कोलकाता
'जीवन जीने के लिए है और जीना चाहते हैं तो तकलीफें आएंगी ही। अगर उनका सामना नहीं करेंगे तो जीने में कोई मजा नहीं है। यह एक खेल की तरह है, जिसमें जीतना ही लक्ष्य होना चाहिए।Ó एफएम पर कुछ ऐसी ही प्रेरणादायक बातों को सुनकर इन दिनों बहुत से कोलकातावासियों के दिन की शुरूआत होती है। ये बातें उनके चहेते आरजे डेन कहते हैं। वह रोज सुबह छह बजे स्टूडियो में अपने व्हील चेयर पर बैठकर 'हाल छेरो ना बंधुÓ कहकर अपने श्रोताओं को जगाते हंै, जो उसके शो का नाम भी है, जिसका मतलब 'हौसला मत छोड़ोÓ है। शारीरिक रूप से विकलांग डेन ने कभी हार नहीं मानी। उनकी जिंदगी बेहद संघर्षपूर्ण रही है। वे डोपा रिस्पान्सिव डिस्टोनिया (डीआरडी) नामक घातक बीमारी से पीडि़त हैं। वह हर रोज सुबह 6 से 7 बजे तक अपनी संघर्षपूर्ण जिंदगी व अनुभवों को बांटकर सुनने वालों का हौसला बुलंद करते हैैं।
डेन बताते हैं, 'बचपन में दूरदर्शन पर प्रणय राय के शो 'द वल्र्ड दिस वीकÓ देखकर काफी प्रेरणा मिलती थी। उनकी तरह मीडिया में आना चाहते थे। 91.9 फ्रेन्ड्स एफएम पर अपना शो करके महसूस होता है कि जैसे हाथ में चांद आ गया हो। मेरे जैसे बहुत कम लोग हैैं, जो अपने सपने को सच करने में सफल होते हैैं। डेढ़ वर्ष की आयु में बीमारी के कारण विकलांग हो गया, यह सच्चाई है। इसे स्वीकार करना होगा, क्योंकि भाग्य को कोसना हार मानना है और मैं हारना नहीं चाहता। आरजे बनना सपने को सच करने की पहली सीढ़ी है। हर मुकाम को हासिल करने में माता-पिता व गुरुजन ने हमेशा साथ दिया।Ó
31 वर्षीय डेन के डाक्टर पिता पवित्र देव मुखर्जी बताते हैैं कि 25 वर्ष की उम्र तक वह बोल भी नहीं सकता था। उसकी बीमारी का इलाज किसी के पास नहीं था। बीमारी के दस साल बाद दवा का आविष्कार हुआ। बचपन में उसकी विकलांगता को देखकर उसके शारीरिक, मानसिक विकास व शिक्षा के लिए इंडियन इंस्टीच्यूट आफ सेरिब्रल पाल्सी में भर्ती कराया। कई बार उसकी स्थिति काफी बिगड़ गई। वह खाना तक नहीं खा पाता था। अपै्रल, 2005 में ऐसा लगा कि वह दुनिया छोड़कर चला जाएगा, लेकिन नवंबर, 2005 से उसमें काफी सुधार आने लगा। वह बोलने लगा था। पहले आर्टिकल लिखकर कम्प्यूटर साफ्टवेयर के जरिए लोगों के समक्ष अपनी बातों को रखता था। इस दौरान उसे वैश्विक पहचान भी मिली। अमेरिका, डेनमार्क, ब्राजील व जर्मनी में उसने भारत का प्रतिनिधित्व किया। डेन को हिमालय पर जाना बहुत अच्छा लगता है। चलने में असमर्थ होने के बावजूद व्हील चेयर की सहायता से पिछले वर्ष अक्टूबर में उसने हिमालय की सैर की थी। हिमालय पर उसने 50 फुट की ऊंचाई तक का सफर किया। हिमालय को वह भगवान मानता है और वहां बैठकर वह काफी मनन करता है, जैसे उसे वहां ऊर्जा मिलती हो।
मां अल्पना कहती हैं, 'हम भी रेडियो पर उसे रोज सुनते हैं। इस दौरान उसकी जिंदगी की कई उन बातों को जानने को मिलता है, जो हम नहीं समझ सके थे। वैसे जब वह नहीं बोलता था तो उसकी आंखों से हर बात समझ आ जाती थी। पहली बार जब वह बोला तो उसके पिता ने गौर किया। एफएम में जाकर वह बहुत खुश है। रोज आफिस से घर आकर दिनभर की चर्चा करता है। उसे और आगे बढऩा है। उसके दोस्तों में कई लड़कियां भी हैं, जिनकी बातें भी वह बताता है।
डेन के शो के प्रोड्यूसर रायन मजुमदार बताते हैैं कि शो को लेकर काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। महिलाएं, बच्चे, छात्र, बुजुर्ग, हर वर्ग के लोग फोन, एसएमएस कर पूछते हैैं। वे बताते हैैं कि डेन से उन्हें काफी
पे्ररणा मिलती है। उन्हे सुनकर व फोन पर बात करके कइयों में जीने की नई उम्मीद जगी है। उसकी एक खासियत यह है कि आरजे बनने के लिए उसे किसी प्रकार का प्रशिक्षण लेने की जरुरत नहीं पड़ी। वह पढ़ाई भी करता है। स्नातक में द्वितीय वर्ष का छात्र है। इसके साथ ही वह आईआईबीसी नामक कंपनी में काम करता है एवं 'अंकुरÓ नामक संस्था के साथ सामाजिक कार्य भी करता है।
राहुल मिश्रा, कोलकाता
'जीवन जीने के लिए है और जीना चाहते हैं तो तकलीफें आएंगी ही। अगर उनका सामना नहीं करेंगे तो जीने में कोई मजा नहीं है। यह एक खेल की तरह है, जिसमें जीतना ही लक्ष्य होना चाहिए।Ó एफएम पर कुछ ऐसी ही प्रेरणादायक बातों को सुनकर इन दिनों बहुत से कोलकातावासियों के दिन की शुरूआत होती है। ये बातें उनके चहेते आरजे डेन कहते हैं। वह रोज सुबह छह बजे स्टूडियो में अपने व्हील चेयर पर बैठकर 'हाल छेरो ना बंधुÓ कहकर अपने श्रोताओं को जगाते हंै, जो उसके शो का नाम भी है, जिसका मतलब 'हौसला मत छोड़ोÓ है। शारीरिक रूप से विकलांग डेन ने कभी हार नहीं मानी। उनकी जिंदगी बेहद संघर्षपूर्ण रही है। वे डोपा रिस्पान्सिव डिस्टोनिया (डीआरडी) नामक घातक बीमारी से पीडि़त हैं। वह हर रोज सुबह 6 से 7 बजे तक अपनी संघर्षपूर्ण जिंदगी व अनुभवों को बांटकर सुनने वालों का हौसला बुलंद करते हैैं।
डेन बताते हैं, 'बचपन में दूरदर्शन पर प्रणय राय के शो 'द वल्र्ड दिस वीकÓ देखकर काफी प्रेरणा मिलती थी। उनकी तरह मीडिया में आना चाहते थे। 91.9 फ्रेन्ड्स एफएम पर अपना शो करके महसूस होता है कि जैसे हाथ में चांद आ गया हो। मेरे जैसे बहुत कम लोग हैैं, जो अपने सपने को सच करने में सफल होते हैैं। डेढ़ वर्ष की आयु में बीमारी के कारण विकलांग हो गया, यह सच्चाई है। इसे स्वीकार करना होगा, क्योंकि भाग्य को कोसना हार मानना है और मैं हारना नहीं चाहता। आरजे बनना सपने को सच करने की पहली सीढ़ी है। हर मुकाम को हासिल करने में माता-पिता व गुरुजन ने हमेशा साथ दिया।Ó
31 वर्षीय डेन के डाक्टर पिता पवित्र देव मुखर्जी बताते हैैं कि 25 वर्ष की उम्र तक वह बोल भी नहीं सकता था। उसकी बीमारी का इलाज किसी के पास नहीं था। बीमारी के दस साल बाद दवा का आविष्कार हुआ। बचपन में उसकी विकलांगता को देखकर उसके शारीरिक, मानसिक विकास व शिक्षा के लिए इंडियन इंस्टीच्यूट आफ सेरिब्रल पाल्सी में भर्ती कराया। कई बार उसकी स्थिति काफी बिगड़ गई। वह खाना तक नहीं खा पाता था। अपै्रल, 2005 में ऐसा लगा कि वह दुनिया छोड़कर चला जाएगा, लेकिन नवंबर, 2005 से उसमें काफी सुधार आने लगा। वह बोलने लगा था। पहले आर्टिकल लिखकर कम्प्यूटर साफ्टवेयर के जरिए लोगों के समक्ष अपनी बातों को रखता था। इस दौरान उसे वैश्विक पहचान भी मिली। अमेरिका, डेनमार्क, ब्राजील व जर्मनी में उसने भारत का प्रतिनिधित्व किया। डेन को हिमालय पर जाना बहुत अच्छा लगता है। चलने में असमर्थ होने के बावजूद व्हील चेयर की सहायता से पिछले वर्ष अक्टूबर में उसने हिमालय की सैर की थी। हिमालय पर उसने 50 फुट की ऊंचाई तक का सफर किया। हिमालय को वह भगवान मानता है और वहां बैठकर वह काफी मनन करता है, जैसे उसे वहां ऊर्जा मिलती हो।
मां अल्पना कहती हैं, 'हम भी रेडियो पर उसे रोज सुनते हैं। इस दौरान उसकी जिंदगी की कई उन बातों को जानने को मिलता है, जो हम नहीं समझ सके थे। वैसे जब वह नहीं बोलता था तो उसकी आंखों से हर बात समझ आ जाती थी। पहली बार जब वह बोला तो उसके पिता ने गौर किया। एफएम में जाकर वह बहुत खुश है। रोज आफिस से घर आकर दिनभर की चर्चा करता है। उसे और आगे बढऩा है। उसके दोस्तों में कई लड़कियां भी हैं, जिनकी बातें भी वह बताता है।
डेन के शो के प्रोड्यूसर रायन मजुमदार बताते हैैं कि शो को लेकर काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। महिलाएं, बच्चे, छात्र, बुजुर्ग, हर वर्ग के लोग फोन, एसएमएस कर पूछते हैैं। वे बताते हैैं कि डेन से उन्हें काफी
पे्ररणा मिलती है। उन्हे सुनकर व फोन पर बात करके कइयों में जीने की नई उम्मीद जगी है। उसकी एक खासियत यह है कि आरजे बनने के लिए उसे किसी प्रकार का प्रशिक्षण लेने की जरुरत नहीं पड़ी। वह पढ़ाई भी करता है। स्नातक में द्वितीय वर्ष का छात्र है। इसके साथ ही वह आईआईबीसी नामक कंपनी में काम करता है एवं 'अंकुरÓ नामक संस्था के साथ सामाजिक कार्य भी करता है।