इज्जत की खातिर घरेलू हिंसा का शिकार होते रहते हैं पुरुष


राहुल मिश्रा, कोलकाता
पति व सास की रोज-रोज पिटाई व प्रताड़ना से गृहवधु का जीना दुश्वार हो गया है। ये शब्द अक्सर सुनने को मिलते हैं। पर कहीं ये सुनने को नहीं मिलता कि किसी महिला ने अपने पति और सास का जीना दुश्वार कर रखा है। क्यों? क्या ऐसा नहीं होता। होते हैं लेकिन पुरूष प्रधान समाज होने के कारण ये बातें घर से बाहर समाज में नहीं पहुंच पाती। पुरुष खानदान की इज्जत की खातिर समझौता कर घरेलू हिंसा का शिकार होते रहते हैं। यही कारण है कि घरेलू हिंसा के शिकार होने वाले पुरुषों के लिये कुछ समाजसेवी संगठन बन रहे हैं। इन संगठनों के मुताबिक बेचारा आदमी अगर औरत पर हाथ उठाए तो जालिम, अगर औरत से पिट जाए तो बुजदिल, औरत को किसी के साथ देख लड़ाई करते ईष्र्यालु, चुप रहे तो बेगैरत घर के बाहर रहे तो आवारा, घर में रहे तो नकारा बच्चों को डांटे तो जालिम, न डांटे तो लापरवाह औरत को नौकरी से रोके तो शकी मिजाज न रोके तो बीवी की कमाई खाने वाला मां की माने तो मां का चमचा, बीवी की सुने तो जोरू का गुलाम। इसके बाद भी अपनी तकलीफ किसी से बता नहीं सकता। अगर ऐसा करता है तो लोग हंसते हैं। आल इंडिया मेन्स वेलफेयर एसोसिएशन के प्रदेश प्रभारी डी एस राव बताते हैं कि महिलाओं के मुकाबले पुरूष घरेलू हिंसा का सबसे भयावह पहलू यही है कि उनके खिलाफ होने वाली हिंसा की बात न तो कोई मानता है। न ही पुलिस इसकी शिकायत दर्ज करती है और न ही कोई सरकार द्वारा महिला आयोग की तरह पुरूष आयोग का गठन अभी तक किया गया है। हंसी मजाक में पूरे प्रकरण को उड़ा दिया जाता है। समाज में कुछ लोग घरेलू हिंसा के शिकार व्यक्ति को जोरू का गुलाम, नामर्द और न जाने क्या क्या कहते हैं। जिसे सुन पीडि़त पुरूष खुद को हीन महसूस करता है। इस सबसे परेशान होकर बेबसी में कोई कोई पुरूष कई बार आत्महत्या जैसा गम्भीर कदम तक उठाने पर भी मजबूर हो जाता है। आए दिन शादीशुदा पुरुषों की आत्महत्या के मामले प्रकाश में आते हैं। पर इसके पीछे की सच्चाई से बहुत कम ही लोग ही रू-ब-रू हो पाते हैं। एक अन्य संस्था कांफिडेयर मेंस राइट्स कम्युनिटी सेंटर के विकास बताते हैं कि महानगर में पत्नी पीडि़तों का समूह कहीं चुपचाप तो कहीं खुलेआम बैठक करते हैं। जब नया पीडि़त आता है तो उनकी काउंसिलिंग होती है जिससे कि वह आत्महत्या न कर सके। कई सर्वे व जांच में यह बात सामने आ चुकी है कि आईपीसी की धारा 498 ए का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है। इसके तहत कई पतियों पर दहेज के लिए पत्नी को प्रताडि़त करने के झूठे आरोप लगे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2006 में एक सिविल याचिका 583 में यह टिप्पणी की थी कि कानून के खामियों का फायदा उठा कर कई पत्नियां पति को धमका रही हैं। आंकड़े देखें तो औसतन जहां हर 19 मिनट में देश में किसी व्यक्ति की हत्या होती है, वहीं हर 10 मिनट में एक विवाहित व्यक्तिआत्महत्या करता है। गौरतलब है कि पत्नी पीडि़तों के समूह ने संगठित होकर सरकार से लगातार संघर्ष कर देहज उत्पीड़न के कानून 498-ए में बदलाव कर इस जमानती बनाने की मांग कर रहा है। बदलाव के लिए सरकार विचार कर रही है। संगठन अलग पुरुष कल्याण मंत्रालय की मांग कर रहे हैं। पुरुषों के पक्ष में दस्तावेज जुगाड़कर सरकार के पास ज्ञापन भेजकर लगातार दवाब बना रहे हैं।
 
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