-एक ही बेंच पर बैठते हैैं महल व फुटपाथ दोनों के बच्चे 
-कोई देता पूरी फीस, कोई आधा तो कइयों के माफ
- सब को शिक्षा मुहैया कराना है मकसद


राहुल मिश्रा, कोलकाता
 शिक्षा के अधिकार कानून के तहत कहा गया है, सभी निजी स्कूलों में नर्सरी स्तर पर 25 फीसदी सीट आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए आरक्षित किया जाना चाहिए। इस कानून का जहां निजी स्कूलों के प्रिंसिपलों ने विरोध किया, वहीं कोलकाता के सियालदह स्थित लोरेटो स्कूल पूरे देश को अपनी नीतियों से सबक सिखा रही हैै। 
इस स्कूल के आधे छात्र जहां डाक्टर, इंजीनियर, बिजनेसमैन जैसे उच्च वर्ग के बच्चे हैैं, वहीं आधे रिक्शा चालकों, फुटपाथी हाकर, घरों में मजदूरी करने वाले, भीख मांगने वाले जैसे अति निम्न वर्ग के परिवारों के बच्चे हैैं, तो कुछ अनाथ व फुटपाथ से उठाए गए हैैं। दोनों ही श्रेणी के बच्चे एक साथ कक्षा में एक ही बेंच पर बैठकर समान शिक्षा ग्रहण करते हैैं, साथ में खेलने, पढऩे के साथ खाना भी खाते हैैं। 
इस स्कूल में करीब 1400 छात्र हैैं, जिनमें से सिर्फ 450 छात्र हैं, जो पूरा फीस देते हैैं, जबकि आधा से अधिक ऐसे छात्र है जिनकी फीस उनके माता पिता नहीं कोई और देता हैै। वहीं 300 से करीब ऐसे छात्र हैैं, जिनके अभिभावक अपने सामथ्र्य अनुसार फीस देते हैैं, जहां कक्षा का मासिक फीस 1200 रुपए हैं, वहीं कुछ छात्र ऐसे भी हैैं, जिनके अभिभावक सिर्फ पांच रुपए मासिक फीस भरते हैैं। 
स्कूल की सेक्रेटरी शुक्ला रेबेरियो बताती हैैं कि यहां शिक्षा का काफी उच्च स्तर को बरकरार रखा गया है ताकि बच्चों को शैक्षणिक तरफ से कोई नुकसान न पहुंचे। यहीं कारण हैैं कि अभिभावक समझते हैैं कि बच्चे को सही मायने शिक्षित करने के लिए स्कूल का परिवेश काफी बेहतर हैै, जहां वे समाज के हर स्तर को जान सकेंगे। 
छात्रा मौली सरकार कहती हैै, हम छात्र आर्थिक भेदभाव के बारे नहीं सोचते, हम सहपाठी के साथ अच्छे दोस्त भी हैैं, सभी साथ पढऩे के साथ खेलते-खाते भी हैैं। दरअसल हमारे लिए अमीर गरीब कोई मायने नहीं रखता। 
वहीं कक्षा एक की छात्रा सुस्मिता पोरे के पिता एक रिक्शा चालक हैैं, घर की स्थिति काफी दयनीय है। लेकिन उसके पढ़ाई लिखाई पर इसका कोई असर नहीं पड़ता। वह पढ़ाई में उतनी ही तेज है, जितने दूसरे छात्र। वह कहती हैैं कि उनके सहपाठी उनसे काफी प्यार करते हैैं, साथ में हम पढ़ाई के साथ खूब खेलते भी हैैं।  
स्कूल की प्रधानाध्यापिका सिस्टर सिरील कहती हैैं, उनका मकसद सबको समान शिक्षा मुहैया कराना है। अगर बच्चों को उनके वर्ग के अनुसार अलग-अलग पढ़ाया जाएगा तो समाज की सोच में कभी भी समानता संभव नहीं हो पाएगा और कभी भी गरीब अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा मुहैया न कराने के डर से नहीं उबर पाएंगे। इसीलिए हमारा फर्ज बनता है कि छात्रों में ऊंच-नीच का भेदभाव न करके समान शिक्षा के अवसर मुहैया कराएं।

साभार ः दैनिक जागरण 
 
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