राहुल मिश्रा, कोलकाता
 कहते हैैं मां का दिल सबसे कोमल होता है और अपने बच्चे की हिफाजत के लिए वह पूरी दुनिया से लड़ सकती है। यह बात आधी रात को महानगर की सुनसान सड़क पर अपने बेटे को दुलारती, पुचकारती एक मां को देखने और उसकी कहानी सुनने के बाद नकारा नहीं जा सकता। रजिया सुल्तानी एक 26 वर्षीया मां हैै। उसमें अपने बेटे जावेद के लिए जितना 'मांÓ का प्यार है, उतना ही एक 'बेबस युवतीÓ की नफरत समाज और दुनिया के लोगों से हैै, जिनसे उसे जिन्दगी भर ठोकरे ही मिली। उन ठोकरों ने रजिया के सीने को इतना मजबूत बना दिया कि आज उसके सामने दर्द कोई मायने नहीं रखता। रजिया की यही हिम्मत उसे चांदनी चौक इलाके की सुनसान सड़क पर अपने बेटे जावेद के साथ पूरी रात बिताने में मदद करती है। 
जब महानगर के हर घर की बत्तियां बुझ जाती हैं और लोग बिस्तर पर अपने बच्चों के साथ सोने की तैयारी में जुट जाते हैैं, तब रजिया अपने जिगर के टुकड़े के साथ अपनी दुकान सजाती है। जब कीचन रूम का दरवाजा बंद होता है, तो रजिया चूल्हे में आग फूंकती है। 
रजिया बताती है, एक साल पहले अपने बेटे के साथ कोलकाता आयी। यहां आने के बाद दोनों के पेट पालने के लिए सड़कों पर भटकते रहे। कई घरों में काम मांगने गयी, लेकिन साथ में बच्चा रखने की इजाजत किसी ने नहीं दी और अपने जिगर के टुकड़े  को एक पल के लिए भी आंखों से ओझल नहीं करना चाहती थी। कुछ रुपये थे तो रास्ते पर सिगरेट, गुटखा बेचने लगी, लेकिन दिन में पुलिस वाले के साथ दूसरे हाकर भी परेशान करते और कहीं दुकान नहीं लगाने देते। फिर रात को 12 बजे से सुबह आठ बजे तक दुकान लगाने लगी। चालक, पुलिस वाले, हाकर सहित कुछ भूले भटके लोग यहां चाय पीने, गुटखा व सिगरेट लेने आ जाते हैैं। सुबह तीन बजे के बाद से बिक्री अधिक होती है।  
 यह पूछने पर कि रात को अकेला छोटे बच्चे के साथ डर नहीं लगता तो कहने लगी, बाबू, जिंदगी में इतनी तकलीफ झेल ली कि अब हर परिस्थिति को झेलने की हिम्मत आ गयी है। कई बार तो पुलिस वाले मेरी दुकान को उठाकर ले गये, रुपये मांगते और डराते हैैं, रात को गुंडे, मवाली भी सड़क पर घूमते हैैं, कुछ तो गंदी हरकतें भी करने की कोशिश करते लेकिन फिर भी हिम्मत नहीं हारती। 
जनम लेते ही मां मर गयी, बाप काम धंधे पर रहता, सौतेली मां आयी तो उनसे गालियों और ताने के अलावा कुछ भी न मिला। दिन रात खटती थी, फिर भी दो पल का खाना सही से नसीब नहीं होता। बाप ने ध्यान दिया तो उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में शादी करवा दी, शौहर ने शुरूआती के कुछ दिनों में दिल भर कर प्यार किया। एक बेटा भी हुआ, लेकिन जितनी पुरानी होती गयी, उसका और उसके परिवार वालों का जुल्म भी बढ़ता ही चला गया, कभी सास तो कभी ननद की यातनाएं, ये सब तो मुझे तो सहने की आदत थी, लेकिन मेरे बच्चे को जब तकलीफ होती तो मुझे रहा नहीं जाता, जन्म के साल भर बाद से ही वह खाने तक को तरसता रहा। शौहर से कहने पर वह गालियां बकता और मेरे साथ बच्चे की भी पिटाई कर देता। भाग्य की मारी तो थी ही लेकिन अपने बच्चे पर दुख की साया नहीं पडऩे देना चाहती और उसे लेकर घर छोड़कर भाग निकली और कोलकाता चली आयी। 
मेरा बेटा सलीम अभी पांच साल का है, रातभर मेरे साथ यहां रहता, जब कहीं से कोई ग्राहक आता तो उससे दो चार बातें करता, कोई गाड़ी आती तो उसके साथ दौड़ लगाता, कभी मेरी गोद में आकर बैठ जाता, मेरा मुंह चूम लेता पर रात भर मेरी हिफाजत में जागता रहता है। 
रजिया ने बताया कि सलीम सुबह आठ बजे आंगनवाड़ी सेंटर पर जाता है, फिर स्कूल भी जाता है और एक मैडम के पास ट्यूशन भी पढ़ता है, फिर शाम को सो जाता है। रजिया कहती है मैैं नहीं चाहती कि मेरा बेटा किसी गलत संगती में पड़े और गालियां बके। इसीलिए हास्टल में डालना चाहती हूं, लेकिन एक मैडम ने बताया कि इसके लिए जन्म प्रमाणपत्र लगेंगे पर वह मेरे पास नहीं है। इसे बनवाने के लिए सुना है रुपये लगेंगे पर पता नहीं बन भी पायेगा कि नहीं। मन में तो हौसला है कि मेरा बेटा एक दिन पढ़ लिखकर होनहार बनेगा और मेरे भी अच्छे दिन आयेंगे। तब खुशियां मेरी कदमों में होगी, पर एक ही बात का डर रहता कि ये जालिम दुनिया कहीं मेरे बेटे को बिगाड़ न दे और वह कहीं दूसरे बच्चे की तरह गलत संगत में अपराध न करने लगे।

साभार ः दैनिक जागरण
 
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