राहुल मिश्र
रोशनी से जगमगाते महानगर में ढिबरी के सहारे दुकान चलानेवाले मूढ़ीवाले चाचा के हम कायल हैं. शाम के वक्त नाश्ते के लिए जब दफ्तर से नीचे गली में निकलते हैं तो उनसे मुलाकात होती है. महीने के शुरू-शुरू में उन्हें हम नजरअंदाज कर देते हैं, क्योंकि उन दिनों जेब गरम रहती है और नाश्ते का प्लेट चाउमिन, कचौड़ी, समोसे, चॉप जैसे चटपटे व्यंजनों से सजता है, पर ज्यों
-ज्यों कैलेंडर पर दिन नीचे उतरता जाता है, प्लेट से महंगे व्यंजन भी उतरते जाते हैं. यहां तक कि नाश्ते के लिए नीचे उतरने वाले पांच से सात जनों का गुट दो जनों में बदलने लगता है. हालत ये हो जाती कि कुछ लोग चोरी-चुपके अकेले ही मुंह मार आने में ही भलाई समझते हैं. यदि गुट में चले भी गये तो : तुम रखो, मैं देता हूं, की भाषा आज तो मेरी जेब खाली है में बदल जाती है. फिर कोने में ढिबरी जला कर बैठे मूढ़ीवाले चाचा सहारा बनते हैं. वहां 10 रु पये में दो जनों के भूख को शांत करने का इंतजाम हो जाता है.
छोटी सी दुकान में बड़ा सा तराजू लगाये चाचा का अंदाज निराला है. अगर आपने दस रुपये दिये, और दो जगह मूढ़ी-चनाचूर मांग लिया तो थोड़ा इंतजार करना पड़ जायेगा, क्योंकि दोनों थोंगे में जब तक एक समान मूढ़ी का बंटवारा नहीं होगा. वह देंगे नहीं. जरूरत पड़ी तो वह तराजू के दोनों पलड़ों पर थोंगे रख कर माप लेंगे, पर एक दाना इधर-उधर नहीं होने देंगे. भले ही थोड़ा बहुत इधर-उधर होने से आपको फर्क नहीं पड़ता. लेकिन चाचा नाइंसाफी नहीं करेंगे, क्योंकि उन्होंने ईमानदारी की कसम खा रखी है. ऐसा करते वक्त अगर आपने उनको टोक दिया तो शांत रहनेवाले चाचा आपके अकल को ठिकाने लगा देंगे. जब वह बोलने लगेंगे तो इतना जरूर है कि भ्रष्ट से भ्रष्ट नेता भी कुछ देर के लिए ईमानदार बनने की इच्छा मन में पाल लेगा.
चाचा कहते हैं : मैंने आज तक न एक पैसा बेईमानी से कमाया है, ना ही बेईमानों को दिया है. यहां हर दुकान में बिजली है, पर मेरे यहां नहीं, क्योंकि मैं किसी को घूस नहीं देना चाहता और बिना घूस दिये बिजली यहां मिलनेवाली नहीं. देखो, मेरे बच्चे भी मुङो पागल समझते हैं, लेकिन मेरे लिए ईमानदारी और इंसाफ सबसे बड़ी संपत्ति है. मुङो ऐसा करके सुकून मिलता है. मेरा मानना है कि जो लोग भी भ्रष्टाचार, बेईमानी को गलत मानते हैं, उन्हें कसम खा लेनी चाहिए कि बेईमानी से न एक रुपया कमायेंगे, न एक रुपया किसी बेईमान को देंगे. ऐसा एक फीसदी लोग भी कसम खा लें, तो भ्रष्टाचार कई फीसदी कम हो जायेगा.
रोशनी से जगमगाते महानगर में ढिबरी के सहारे दुकान चलानेवाले मूढ़ीवाले चाचा के हम कायल हैं. शाम के वक्त नाश्ते के लिए जब दफ्तर से नीचे गली में निकलते हैं तो उनसे मुलाकात होती है. महीने के शुरू-शुरू में उन्हें हम नजरअंदाज कर देते हैं, क्योंकि उन दिनों जेब गरम रहती है और नाश्ते का प्लेट चाउमिन, कचौड़ी, समोसे, चॉप जैसे चटपटे व्यंजनों से सजता है, पर ज्यों
-ज्यों कैलेंडर पर दिन नीचे उतरता जाता है, प्लेट से महंगे व्यंजन भी उतरते जाते हैं. यहां तक कि नाश्ते के लिए नीचे उतरने वाले पांच से सात जनों का गुट दो जनों में बदलने लगता है. हालत ये हो जाती कि कुछ लोग चोरी-चुपके अकेले ही मुंह मार आने में ही भलाई समझते हैं. यदि गुट में चले भी गये तो : तुम रखो, मैं देता हूं, की भाषा आज तो मेरी जेब खाली है में बदल जाती है. फिर कोने में ढिबरी जला कर बैठे मूढ़ीवाले चाचा सहारा बनते हैं. वहां 10 रु पये में दो जनों के भूख को शांत करने का इंतजाम हो जाता है.
छोटी सी दुकान में बड़ा सा तराजू लगाये चाचा का अंदाज निराला है. अगर आपने दस रुपये दिये, और दो जगह मूढ़ी-चनाचूर मांग लिया तो थोड़ा इंतजार करना पड़ जायेगा, क्योंकि दोनों थोंगे में जब तक एक समान मूढ़ी का बंटवारा नहीं होगा. वह देंगे नहीं. जरूरत पड़ी तो वह तराजू के दोनों पलड़ों पर थोंगे रख कर माप लेंगे, पर एक दाना इधर-उधर नहीं होने देंगे. भले ही थोड़ा बहुत इधर-उधर होने से आपको फर्क नहीं पड़ता. लेकिन चाचा नाइंसाफी नहीं करेंगे, क्योंकि उन्होंने ईमानदारी की कसम खा रखी है. ऐसा करते वक्त अगर आपने उनको टोक दिया तो शांत रहनेवाले चाचा आपके अकल को ठिकाने लगा देंगे. जब वह बोलने लगेंगे तो इतना जरूर है कि भ्रष्ट से भ्रष्ट नेता भी कुछ देर के लिए ईमानदार बनने की इच्छा मन में पाल लेगा.
चाचा कहते हैं : मैंने आज तक न एक पैसा बेईमानी से कमाया है, ना ही बेईमानों को दिया है. यहां हर दुकान में बिजली है, पर मेरे यहां नहीं, क्योंकि मैं किसी को घूस नहीं देना चाहता और बिना घूस दिये बिजली यहां मिलनेवाली नहीं. देखो, मेरे बच्चे भी मुङो पागल समझते हैं, लेकिन मेरे लिए ईमानदारी और इंसाफ सबसे बड़ी संपत्ति है. मुङो ऐसा करके सुकून मिलता है. मेरा मानना है कि जो लोग भी भ्रष्टाचार, बेईमानी को गलत मानते हैं, उन्हें कसम खा लेनी चाहिए कि बेईमानी से न एक रुपया कमायेंगे, न एक रुपया किसी बेईमान को देंगे. ऐसा एक फीसदी लोग भी कसम खा लें, तो भ्रष्टाचार कई फीसदी कम हो जायेगा.