युवाओं में बढ़ते अपराध और यौन हिंसा की प्रवृत्तियों में अचानक आई उछाल के कारणों की व्याख्या करना आसान नहीं है. इसकी किसी एक वजह पर आम सहमति नहीं बन सकती, लेकिन पिछले कुछ यौन अपराधों के इतिहास को खंगालने पर ज्यादातर मामलों में युवाओं की पोर्न वीडियो तक पहुंच एक बड़ी वजह कही जा सकती है. इसी आधार पर इंदौर के वकील रमेश वासवानी ने पोर्न वीडियो पर रोक लगाने की मांग के साथ अदालत में एक जनहित याचिका दायर की है. श्री वासवानी का कहना है कि यूं तो पोर्न वीडियो देखना अपराध की श्रेणी में नहीं आता लेकिन इसे देखकर युवाओं में बढ रही यौन हिंसा की प्रवृत्तियां चिंता का विषय अवश्य हैं. इसलिये न सिर्फ इसे देखने पर पाबंदी लगाई जानी चाहिए, वरन् पोर्न वीडियो देखना अपराध की श्रेणी में लाते हुए इसे देखते पाए जाने की स्थिति में सजा का प्रावधान भी होना चाहिए. रमेश वासवानी की इस मांग से इत्तिफाक न रखते हुए कई ऐसे भी लोग हैं जो इसे सामाजिक और यौन स्वतंत्रता का हनन करने के समान मानते हैं. पोर्न पर रोक न लगाए जाने के पक्ष में इनका तर्क यह होता है कि पोर्न वीडियो ही इस हिंसा के पीछे कारण है इसका कोई ठोस सबूत नहीं है. इसकी भी कोई गारंटी नहीं है कि इस पर रोक लगाए जाने के बाद यौन हिंसा की घटनाएं बंद हो जाएंगी.
पोर्न और यौन हिंसा के बीच संबंध दिखाते आंकड़े
18 अप्रैल को दिल्ली में 5 साल की बच्ची को बलात्कार के मकसद से अगवा करने से पहले दोनों आरोपियों ने अपने फोन पर पोर्न फिल्म देखी थी. गूगल सर्च बताता है कि 2012 में ‘पोर्न’ शब्द का सर्च विश्वभर में सर्वाधिक दिल्ली में किया गया. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो का सर्वे भी 2012 में पिछले दशक में सबसे ज्यादा 706 बलात्कार के मामले दर्ज किए जाने की पुष्टि करता है जो 2002 के मुकाबले लगभग दोगुना है.
वैश्विक माहौल
भारत अकेला देश नहीं है जो पोर्नोग्राफी और इसके नकारात्मक सामाजिक असर से गुजर रहा है. पश्चिमी देश खुले विचारों के समझे जाते हैं वे भी अब इसके नकारात्मक असर को स्वीकार कर इस दिशा में जरूरी कदम उठाने पर विचार कर रहे हैं. उदाहरण के लिये अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप में बाल आधारित पोर्न साइट्स गैरकानूनी हैं. बच्चों में पोर्न साइट्स के बढ़ते प्रसार को रोकने और उन्हें इसके कुप्रभावों से बचाने के लिये ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जेम्स कैमरून ने जल्द ही एक सरकारी अध्यादेश लाने की बात कही है जिससे संभवत: रेलवे स्टेशन, कैफे आदि सार्वजनिक स्थानों पर जहां बच्चे ज्यादा तादात में होते हैं, ऐसी साइटें खुलेंगी ही नहीं.
अन्य पहलू
अमेरिकी की एक रिपोर्ट के अनुसार 1994-1998 में बलात्कार के अपराधों में एक से ज्यादा लोगों के शामिल होने का प्रतिशत जहां 7 प्रतिशत था, वहीं 2005-2010 में यह 10 प्रतिशत हो गया. पोर्न फिल्मों से जुड़ी कहानी न सिर्फ बलात्कार जैसे अपराध के बढ़ने की है बल्कि इसके और भी वीभत्स रूप पश्चिमी देशों में देखने को मिल रहे हैं. अमेरिका और कनाडा में भी ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें बलात्कार का वीडियो बनाकर इंटरनेट पर डाल दिया गया. ऐसे ज्यादातर मामले युवा किशोरों के होते हैं.
इसके अलावे भी पोर्न की कई शाखाएं हैं जिन्हें हम अब तक इस मामले से लगभग अलग कर ही सोचते रहे हैं. मोबाइल में एमएमएस की सुविधा उपलब्ध होने के साथ ही अचानक से आयी आपत्तिजनक एमएमएस की बाढ़ आपको याद होगा. आज भी इक्का-दुक्का ऐसी घटनाएं सामने आ ही जाती हैं. इसके अलावे छुपे हुए कैमरों से किसी की आपत्तिजनक निजी वीडियो बनाना और उसे इंटरनेट, यू ट्यूब पर डाल देना भी पोर्न का एक भयावह रूप है. बॉलीवुड सितारों के कई ऐसे वीडियो चर्चा में रहे हैं. हाल ही में टीवी अदाकारा मोना सिंह के एक आपत्तिजनक वीडियो पर खासा बवाल हुआ. ऐसे वीडियो भी पोर्नोग्राफी का ही एक रूप हैं जिन पर पूरी तरह रोक लगाने के लिये कड़े कानून की सख्त जरूरत है.
जहां तक सवाल है सामाजिक और यौन स्वतंत्रता की तो कोई भी कानून स्वतंत्रता के नाम पर आत्महत्या का अधिकार तो नहीं दे सकता. पोर्न के सामाजिक कुप्रभावों को देखते हुए अगर इस पर रोक न लगी तो यह एक प्रकार से समाज को आत्महत्या का अधिकार देना ही होगा. फिर भी इसे ध्यान में रखते हुए इसकी फ्री उपलब्धता पर रोक तो लगाई जा ही सकती है.
 
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