आमिर खान की ‘थ्री इडियट्स’ में घरेलू तरीकों से मोना सिंह का प्रसव करवाते आपने देखा होगा. फिल्म में दिखाया गया है कि इतनी परेशानियों से प्रसव के बाद भी जच्चा और बच्चा दोनों सुरक्षित रहते हैं पर असल जिंदगी में ऐसा करना खतरनाक हो सकता है. शिशु-सुरक्षा के लिए काम करने वाली एक संस्था ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में यह दावा किया है कि भारत में प्रतिवर्ष 300,000 बच्चे जन्म के समय ही मर जाते हैं. रिपोर्ट में असुरक्षित प्रसव, प्रसव के दौरान माँ-बच्चे को संक्रमण होने के कारण तथा समय पूर्व प्रसव को इसका मुख्य कारण बताया है. रिपोर्ट के अनुसार भारत की आधी महिलाएं किसी प्रसूति विशेषज्ञ की देखरेख के बिना ही बच्चा जन्म देती हैं. ऐसे में बच्चे और मां दोनों को संक्रमण होने की संभावना होती है.
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में प्रतिदिन 1000 शिशु जन्म के बाद संक्रमण होने के कारण एक दिन भी जिंदा नहीं रह पाते. ज्यादातर ऐसा शिशुओं को संक्रमण से बचाव के लिए जरूरी तकनीकी साधनों की अनुपलब्धता के कारण होता है. इस ओर न मीडिया का ध्यान जाता है और न ही सरकार का. प्रसव के दौरान और बाद में माँ-बच्चे को संक्रमण से बचाव के लिए अस्पताल में तकनीकी साधनों के अभाव को दुरुस्त करने के लिए सरकारी सहायता की आवश्यकता है. सरकार को इस दिशा में धन का आवंटन करना चाहिए. इस तरह 75 प्रतिशत शिशु जन्म के समय संक्रमण से बचाए जा सकते हैं. अगर संक्रमण से बच्चों को बचा लिया जाए तो हर साल कम से कम 360,000 शिशु मरने से बच जाएंगे.
भारत में प्रसव के दौरान माँ-बच्चे के संक्रमण या अन्य असावधानियों के कारण मरना कोई नई बात नहीं है. मेडिकल साइंस के प्रसार के बाद हालांकि कई गांवों में अब सरकारी अस्पताल की सुविधा पहुंची है पर आज भी अधिकतर गांव इसका पूरा लाभ नहीं ले पाते. गर्भवती महिलाओं को प्रसव पूर्व और बाद में मिलने वाली डॉक्टरी सुविधा का लाभ उठाने वालों की संख्या और भी कम होगी. इसके दो कारण हो सकते हैं, एक तो कि सरकारी अस्पतालों में आधुनिक तकनीकी सुविधाओं का अभाव और दूसरा कि आज भी ग्रामीण इलाकों में इन कारणों के लिए डॉक्टर की आवश्यकता नहीं समझी जाती है. ग्रामीण इलाकों में तो फिर भी जानकारी और जागरुकता का अभाव इसका कारण समझा जा सकता है पर चौंकाने वाली बात तो यह है कि जागरुक शहरी क्षेत्र में भी ऐसा हो रहा है. दिल्ली की एक गाइनाकॉलोजिस्ट के अनुसार दिल्ली जैसे देश के विकसित शहर में कई ऐसी महिलाएं हैं जो अस्पताल की बजाय घर पर ही प्रसूति करवाना बेहतर समझती हैं. ऐसा भी नहीं कि उस वक्त घर से अस्पताल की लंबी दूरी तय करने की असमर्थता के कारण वे ऐसा करती हों. सच तो यह है कि कई महिलाएं घर से एकदम पास अच्छे सुविधासंपन्न नर्सिंग होम या अस्पताल होने पर भी अस्पताल नहीं जातीं. इसके लिए सरकारी स्तर पर महिलाओं और पूरे परिवार को जागरुक किए जाने की आवश्यकता है.
 
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