राहुल मिश्रा
गत दिनों
तसलीमा पर बहस के बाद उसे जानने की शौक चढ़ा. पुस्तक मेले से उसकी पुस्तक
'चार कन्या' का हिन्दी अनुवाद खरीदा था. पुस्तक का पहला भाग 'दूसरा पक्ष'
पढ़ा. दो बहनों का पत्रों के जरिये संवाद शैली में लिखी गयी यह कहानी से
तसलीमा की कला और कलम दोनों से वाकिफ हुआ. घर परिवार छोड़ ढाका शहर में
रहनेवाली आजाद, शिक्षित, स्वाबलंबी और धर्म में विश्वास नहीं रखने वाली
मुस्लिम लड़की यमुना और मैमनसिंह में रहने माता-पिता, भैया-भाभी के साथ रह
रही जवान लड़की उसकी छोटी बहन नुपूर दीदी को बुबू बुलाती है. दोनों की
संवाद कहानी के जरिये बांग्लादेश के मुस्लिम घरों में लड़कियों की स्थिति
का पता चलता है. यहां समय के साथ परदों और बंदिशों में जकड़ती जाती मुस्लिम
समाज की महिलाओं की व्यथा मैंने जाना. मुझे कष्ट तो हुआ ही, साथ ही पुरुष
होने और पुरुषों के बनाये समाज में महिलाओं की घुट-घुट मरने की प्रथा पर
शर्म भी आयी. यमुना उन बेड़ियों को तोड़ कर अपने मुताबिक जी रही है, लेकिन
समाज के लोगों की नजरें जैसे उसे डसने को आतुर हो. उसका अतीत उसे तोड़ने की
कोशिश करता है. फिर भी हिम्मत नहीं हारती और जीती है. क्योंकि उसका साहस
दूसरी लड़कियों का हौसला बनेगा. उसकी बहन भी उससे काफी प्रभावित है और
धीरे-धीरे उसका भी अल्ला और अल्ला के बंदों से विश्वास उठता जा रहा है. पर
उसे बड़ी बहन की स्थिति देख लंबे संघर्ष का डर सताता है. उसकी दीदी को
घरवालों ने जिस लड़के से निकाह कराया था, उसने उसे बदचलन घोषित कर छोड़
दिया था.
कहानी की कुछ लाइनें दिल को छूत है ः
"मैं
जैसे-जैसे बड़ी हो रही थी, मेरी मां मेरा मार्ग उतना ही निर्दिष्ट किये दे
रही थी. छत पर जाना, दोस्तों के घर जाना, बाहर के लोगों के पास आना-जाना सब
कुछ मेरे शारीरिक दोष के कारण बंद हो गया"
-चार कन्या, पृ. १७
यह लाइन बहुत कुछ बता रही है, कि कैसे हसरतों का गला घोंट कर लड़कियां सिमट जाने ती जाती हैं.
"जब
वे लोग बड़े लय में सूरा-निशा पढ़ते होंगे, जब "अररेजालु कवामु न
आलननिसाये विमा फाद्दाल्लाहु बदाहुम अलाबादीन" पढ़ते होंगे, जब जरूर
तुम्हारी और मुमू की आंखें भर आती होंगी ! अहा ! अल्लाह की वाणी कितनी परम
पवित्र है. मां को तो अरबी सुनते ही दोखज के आयाब की बात याद आ जाती है, और
वह रो-धोकर आकुल-व्याकुल हो जाती है. (उस आयत का अर्थ है- पुरुष स्त्री का
स्वामी है, क्योंकि अल्लाह ने उनको एक को दूसरे पर श्रेष्ठता प्रदान की
है.)"
चार कन्या, पृष्ठ-२०
वैसे धर्म को क्या मानना, जो जीने की
आजादी न दे. ईश्वर लड़कियों को गुलाम बना कर धरती पर पैदा किया होगा, ऐसा
अन्याय ईश्वर को शोभा नहीं देता.
इस कहानी में पेज २२ पर एक जगह
लाल व काली चीटिंयो की बात कही गयी है. जिनमें से लाल चींटियों को यमुना
का भाई चुन-चुन कर मार रहा था. किसी ने उसे स्कूल में कह दिया था कि लाल
चींटी हिन्दू है, काली मुस्लिम. इसीलिए लाल को जिंदा नहीं छोड़ना. हालांकि,
बड़ा होकर उसने एक हिंदू लड़की से ही प्रेम विवाह किया.
"पहले जो मैं एक इंसान हूं. मेरी भी कोई इच्खछा-अनिच्छा है-यह बात मैं
किसी को कैसे बताऊं............. खराब होना किसे कहा जाता है, नूपुर ?
पुरुष के साथ सम्पर्क होने से स्त्रियां खराब हो जाती है? लेकिन स्त्रियों
का सम्पर्क की तो खराब नहीं करता? घर के बाहर पुरुष अवैध सम्बन्ध बनाये रख
सके, इसका इंतजाम तो देश में ही किया गया है. कुछ खराब लड़कियों को जुटा कर
वेश्यालय बनाये गये हैं. उन खराब लड़कियों से खेलने के बावजूद पुरुष खराब
नहीं होता."
चार कन्या, पृष्ठ-३०-३१.
ये सवाल समाज से जायज हैं.
"मां
मुझे लेकर पीर के यहां दुआ मांगने गयी थी. पीर साहब ने मेरे सिर पर फूंक
लगायी थी, और अनर्गल बातें कर रहे थे. मुझे वे सारी बातें गढ़ी हुई प्रतीत
हो रही थी, रटी-रटाई.. वे मेरे लिए दुआ मांगेंगे अल्लाह उनकी बातें जरूर
सुनेंगे. ... पीर साहब ने मेरे सिर पर हाथ रखा, सिर से वह हाथ सरक कर मेरी
गर्दन से होता हुआ पीठ पर उतरा. पीठ पर टिके उस हाथ ने मुझे धीरे-धीरे
दबाते हुए उनके शरीर से सटा लिया. इसके बाद उन्होंने पता नहीं क्या-क्या
सूरा पढ़ कर मेरे सिर पर फूंक लगायी. अनजाने आलिंगन से मेरा पूरा बदन सिहर
उठा, लगा कि वे मेरे बालों की सुगंध ले रहे हैं. जब तक सम्भव हुआ, मैं दम
साधे रही. मां दरवाजे के उसे पार खड़ी थी. ऐसा ही नियम है, जिस युवकी को वे
सूरा पढ़ कर फूंक लगाते हैं, उसके परिजन को थोड़ी-सी आड़ में खड़ा होना
पड़ता है. उनका हाथ अब मेरी पीठ से बांह पर आया, बांह से सरक कर छाती पर
रुका, उन्होंने कहा- यहीं पर उल्लाह ने रूह दी है, यह रूह एक दिन उड़
जायेगी. मन को ठंडा रखो, ईमान को मजबूत रखना. पीर साहब मेरे बदन पर अपने
स्नेह का या लोभ का हाथ फेर रहे हैं, भला बताओ. मैं लेकिन समझ रही थी. क्या
आदमी समझ नहीं पाता कि उसके शरीर से लिपटी हुई चीज कोई बेल है या
सांप..........दो हजार रुपये दिये..उनके शिष्यों की संख्या ५० हजार पार कर
चुकी है...मैंने आंगन में २५-३० लड़कियों को दुबक कर बैठे हुए देखा था" चार
कन्या, पृ-४७
"....मां से कह दिया - उस बदमाश आदमी को तुम पीर मानती हो ? यह सुन कर
मां बिलखने लगी. क्योंकि उल्लाह के बंदे को मैंने बदमाश कह दिया था. कहर,
अल्लाह माफ नहीं करेंगे. हशर के मैदन में कठोर सजा का इंतजाम होगा"- चार
कन्या, पृ-५०