राहुल मिश्रा

मैं बड़ा डरपोक हूं. छोटे भाई ने यह स्मरण कराया. उसने कहा कि पिछली रात मैं नींद में बरबरा रहा था कि मुझे बांग्लादेश नहीं जाना. चेहरे पर पसीना, जैसे जबरन कोई मुझे वहां भेज रहा हो. वैसे कोलकाता से ढाका अधिक दूर नहीं, लेकिन सोये में भी बांग्लादेश जाने से कतराने या डरने का मतलब मैं समझ गया. दरअसल, पिछले दिनों एक खबर ने मुझे विचलित कर दिया है. बांग्लादेश में पिछले रविवार हजारों युवा व मदरसों के छात्र सड़क उतर आये थे. वे इतने उग्र थे कि पुलिस ने गोलियां चला दी, चार तत्काल मारे गये, करीब २०० जख्मी हो गये. युवाओं का सड़क पर उतरना मायने रखता है. लेकिन ये उन युवाओं को फांसी पर लटकाने की जिद पर उतरे थे, जो वहां की कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी को बैन करने व उनके उन नेताओं को फांसी देने की मांग कर रहे थे, जो १९७१ में पाकिस्तान के खिलाफ स्वाधीनता आंदोलन के दौरान देश में युद्ध करवाने व दंगे के लिए जिम्मेदार थे. ये ब्लॉगर धर्म की राजनीति और कट्टरता का विरोध कर रहे थे. हालांकि, उन ब्लॉगरों से इन नवयुवाओं को अधिक खतरा नहीं. वे वहां के प्रमुख विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी समर्थित करीब १२ छोटी पार्टियों के नेताओं के कहे पर उतर आये थे. खून गर्म और समूह में होने से उग्र. उग्रता में वैचारिक क्षमता नहीं रहती. आदमी खूंखार हो जाता है. शुरूआत पिछले सप्ताह एक ब्लॉगर अहमद राजीव हैदर की हत्या से हुई. कुछ लोग उसके घर पहुंचे और उसे मार डाला. अब वे उसके दोस्तों की मौत चाहते हैं. सो, सड़क पर छात्रों को उतार दिया. 
बांग्लादेश में धर्म के नाम पर खूनी खेल ने मुझे सचमुच डरा दिया. मैं बांग्लादेशी तो नहीं. न ही मुस्लिम हूं, लेकिन धर्म नहीं मानने वाला तथाकथित नास्तिक जरूर हूं. मंदिर-मस्जिद सुंदर इमारतें, मूर्तियां कलाकार की प्रतिभा ही लगती. इनमें ईश्वर नहीं दिखता. मुझे मौत के बाद सजा का डर नहीं, नहीं चाहिए मोक्ष, जीना चाहता हूं, मौत से डर लगता है. पंडित परिवार से हूं, इसीलिए धर्म के व्यवसाय को समझता हूं. इश्वर और अल्लाह, पंडित और मौलवी में फर्क नहीं मानता. यकीन नहीं कि इनके कहे को ही ऊपर वाला सुनता है और अल्लाह के रहम के लिए इनका कहा सबको सुनना चाहिए. इनके अरबी आयतों और संस्कृत के मंत्रों का डर नहीं मुझे. खूब जानता हूं बिना कुछ किये आराम पाने के लिए कैसे तैयार हुए ये हथियार. ये तो अस्तित्व पर खतरा आता देख अल्लाह के नाम का गलत इस्तेमाल करते हैं. बदलाव नहीं चाहते. स्वर्ग-नरक, दोखज के अयाब का डर दिखाते जकड़ कर रखते हैं. मन मुताबिक जीने नहीं देते. मैं उनकी बातों में नहीं फंसता. अल्लाह और ईश्वर का पोस्टर लगा कर उसके पीछे छिपे राजनीतिक स्वार्थ को पूरा करने के लिए मैं कत्ल नहीं कर सकता. इनका कड़े शब्दों में विरोध करता हूं. बांग्लादेश में राजीव हैदर की मौत से मैं सहम गया हूं. यहां का माहौल भी बदलता नजर आ रहा है. मैं धर्म की राजनीति से बाहर जीना चाहता हूं. पर डर गया हूं, कहीं वे लोग मुझे तो मार नहीं देंगे !
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