हाल ही में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने इंटरनेट पर अश्लील साइटों की भारी बढ़ोत्तरी पर चिंता जाहिर करते हुए एक नोटिस जारी कर केंद्र सरकार से जवाब तलब किया. एक जनहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने माना कि इंटरनेट के लिये कोई विशेष कानून नहीं होने के कारण इस पर मनमाने ढंग से कई ऐसी चीजें डाल दी जाती हैं जो समाज के लिये सही नहीं हैं, खासकर अश्लील साइटें यहां बेधड़क बनाई और देखी जाती हैं. इंटरनेट की बढ़ती उपयोगिता से बच्चे भी इससे अछूते नहीं हैं और ऐसी साइटें उन्हें समय से पहले परिपक्व व हिंसक बना रही हैं. अतः सूचना और प्रौद्योगिकी, सूचना एवं प्रसारण, गृह मंत्रालय तथा संबंधित अन्य संबंधित सरकारी कार्यालयों को निर्देश देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से इस पर जरूरी दिशानिर्देश जारी करने को कहा है. भारत में इंटरनेट के उपयोग की दिशा में सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश महत्वपूर्ण माना जा रहा है और उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही इस पर कोई कानून बनेगा.
इंटरनेट के खुले उपयोग पर पाबंदियों का मामला कोई नया नहीं है. कई देशों ने इस पर चिंता जताई है और इस दिशा मे कदम भी उठाए हैं. चाइना और सऊदी अरब में ऐसी साइटों से बचाव के लिये इंटरनेट फिल्टर का उपयोग जरूरी बना दिया गया है. बाल अश्लीलता को कई देशों ने गैरकानूनी माना है और वक्त के साथ कई देश इससे संबंधित कानूनों में बदलाव लाते रहे हैं. 2003 से पहले अमेरिका में यह गैरकानूनी नहीं था, पर अब है. यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में भी यह गैरकानूनी है.
एक अध्ययन के मुताबिक विश्व स्तर पर इंटरनेट प्रयोग करने वालों की संख्या वर्ष 2000 में 394 करोड़ से बढ़कर 1.858 अरब के आंकड़े तक पहुंच गयी. आंकड़ों की मानें तो इन यूजर्स का एक बड़ा हिस्सा पोर्न वीडियो यूजर है. जिनमें एक बड़ी संख्या 18 वर्ष से कम उम्र के उपभोक्ताओं, यानि कि बच्चों की थी. वर्ष 2003 में एक विदेशी पत्रिका द्वारा कराये गये सर्वे में अश्लील वेबसाइटों के कुल यूजर्स में 20% संख्या बच्चों की पाई गई एवं 100,000 वेबसाइट गैरकानूनी तरीके से ऐसे अश्लील कंटेंट के अपलोडिंग में लिप्त पाए गए. वर्ष 2006 में पोर्न बाज़ार की कुल कमाई 721.50 मिलियन डॉलर यूनाइटेड स्टेट्स में तथा 5262.06 बिलियन डॉलर पूरे विश्व की थी. हर 3 में से 2 तलाक के प्रमुख कारणों में ये वेबसाइट थे. 8 से 16 आयुवर्ग के 10 में से 9 बच्चे इंटरनेट के द्वारा अश्लील फोटोग्राफ्स और वीडियो देख चुके पाए गए जिनमें अधिकतर मामलों में गलती से ये साइटें खुलने की बात सामने आईं. एक तत्कालीन सर्वे के मुताबिक अश्लील कंटेंट पर विश्व में हर सेकेंड 1,66,847.32 रुपये खर्च किए जाते हैं, 28,258 लोग हर सेकंड इसके यूजर्स हैं तथ 372 लोग हर सेकंड वयस्क साइटें सर्च करते हैं. हर 39 मिनट में एक पोर्न साइट अपलोड की जाती है.
इंटरनेट की दुनिया आज के दौर में एक जादुई दुनिया से कम नहीं है. वस्तुतः विश्व के लगभग हर कोने में, हर आयु वर्ग का पसंदीदा बन चुके इस इंटरनेट के सदुपयोग-दुरुपयोग तथा समाज पर इसका सकारात्मक-नकारात्मक प्रभाव हमेशा बहस का मुद्दा रहा है. इंटरनेट यूजर्स जहां इसे ज्ञान का खजाना, सूचना एवं विकास की दुनिया में विज्ञान का वरदान मानते हैं, वहीं बुद्धिजीवी और मनोचिकित्सकों का वर्ग इसे समाज में नकारात्मक विचारों के प्रवाह एवं सामाजिक मूल्यों के ह्रास का महत्वपूर्ण कारक मानता है, विशेषकर बच्चों एवं युवा वर्ग में हिंसक प्रवृत्तियों के लिये वे इसे प्रमुख रूप से जिम्मेदार मानते हैं.
भारत जैसे सांस्कृतिक मूल्यों को धरोहर मानकर चलने वाले देश में इंटरनेट के द्वारा फल-फूल रहा पोर्न बाजार अवश्य ही चिंता का विषय है. उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट की इस पर निगरानी व कड़े कदम उठाए जाने के निर्देश पर जल्द ही कोई आधिकारिक पहल होगी. लेकिन अच्छा होगा कि केवल इस पर निर्भर रहने की बजाय हम खुद सचेत रहें. बच्चों को इनसे बचाने के लिए हम इंटरनेट फिल्टरिंग व्यवस्था का उपयोग कर सकते हैं. ये फिल्टरिंग व्यवस्था दो तरह से काम करती है, पहली तो ऐसी साइटें खुलने से पहले वॉर्निंग देती हैं और दूसरी ऐसी साइटें खुलने नहीं देतीं. जरूरत है सजग रहने की ताकि ये वरदान अभिशाप न बनने पाए.