तेरा परिवार-मेरा परिवार का झगड़ा
भारतीय सामाजिक व्यवस्था के अनुसार विवाह को एक बेहद धार्मिक संस्था का दर्जा दिया जाता है और साथ ही इस बंधन में बंधने वाले महिला-पुरुष को पारिवारिक और सामाजिक दोनों ही तौर पर ताउम्र साथ रहने की अनुमति प्रदान की जाती है और साथ ही वह तन-मन से एक-दूसरे के प्रति समर्पित हो जाते हैं. विवाहित संबंध की एक और सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह संबंध ना सिर्फ महिला-पुरुष को एक साथ जोड़कर रखता है बल्कि उन दोनों के परिवारों को भी एक ऐसे नाजुक बंधन में बांध देता है जो उन्हें हर हाल में निभाना पड़ता है.
हालांकि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि परिवार वालों का संरक्षण दांपत्य जीवन को और अधिक मजबूत बनाने में सहायक होता है लेकिन आज जब बदलती जीवनशैली और प्राथमिकताओं के बीच दांपत्य जीवन में तनाव का आगमन होने लगा है तो हम इस बात से भी इंकार नहीं कर सकते कि कहीं ना कहीं विवाहित दंपत्तियों के बीच इस बढ़ते फासले का कारण परिवारवाले भी हैं.
विवाह के बाद महिला अपने परिवार को छोड़कर अपने पति के परिवारवालों को स्वीकार कर लेती है वहीं पुरुष की भी जिम्मेदारी अपने और पत्नी दोनों के ही परिवारवालों के लिए बन जाती है. दो लोगों का विवाह होने के बावजूद जब विवाह केवल उन दोनों का ही संबंध ना रहकर परिवार और अन्य रिश्तेदारों की कसौटी पर खड़ा हो जाता है तो बेवजह के हस्तक्षेप भी बढ़ने लग जाते हैं. जिसके परिणामस्वरूप तुम्हारा परिवार-मेरा परिवार जैसे भाव पति-पत्नी में उत्पन्न होने लगते हैं.
प्राय: यह देखा जाता है कि विवाह के बाद जब महिला अपने ससुराल वालों के साथ रहने के लिए आती है तो उसे अपने और अपने पति के मामलों में ससुरालवालों का हस्तक्षेप बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होता. यहां तक कि उनका व्यक्तिगत मसला भी उनका व्यक्तिगत ना रहकर पारिवारिक मसला बन जाता है. जाहिर सी बात है यह सब संबंधित विवाहित दंपत्ति के पारस्परिक संबंध को नकारात्मक तरीके से प्रभावित करता है. वहीं दूसरी ओर हालात इसीलिए भी बिगड़ते हैं क्योंकि विवाह के बाद बेटी के जीवन में माता-पिता हस्तक्षेप करना बंद नहीं करते. हालांकि उनकी नीयत बेटी के दांपत्य जीवन में अलगाव पैदा करने की नहीं होती लेकिन बस अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए वह अपनी बेटी को सही-गलत जैसी बातें सिखाते रहते हैं, लेकिन इसका खामियाजा भी उनकी बेटी को पति के साथ मनमुटाव के रूप में भुगतना पड़ता है.
बात तब और बिगड़ जाती है जब माता-पिता द्वारा दी जा रही सीख बेटी के विवाहित संबंध को संवारने के स्थान पर और अधिक बिगाड़ने लग जाती है और अंत में तुम्हारी फैमिली ऐसी है, तुम्हारी फैमिली वैसी है जैसे तानें सुनना और सुनाना एक आम कहानी बन जाती है.
विवाह को साझा पारिवारिक संबंध मानकर जब सास-ससुर या घर के अन्य सदस्य पति-पत्नी के आपसी संबंध में अपनी राय, सुझाव और अन्य तरीके से दखल देने लगते हैं तो हालातों का बिगड़ना लगभग तय हो जाता है जबकि अगर पति-पत्नी के बीच किसी भी तरह का मनमुटाव विकसित हुआ है तो वह इतने तो परिपक्व होते ही हैं कि उसे सुलझा लें.
विवाह चाहे लव मैरेज के तहत हो या परंपरागत शैली के अनुसार लेकिन जब दो लोग एक साथ रहने लगते हैं तो उनमें मतभेद होना लाजमी है. वह दोनों लड़ेंगे कुछ समय तक बात नहीं करेंगे, लेकिन यह भी ध्यान देना चाहिए कि जो भी है यह उन दोनों का आपसी मामला है, वह किसी ना किसी तरह इसे सुलझा ही लेंगे. जबकि किसी तीसरे का दखल उनके संबंध को और बिगाड़ सकता है.
हालांकि हम इस बात से इंकार नहीं करते कि कई बार बिगड़ते हालातों को सुलझाने में परिवार का ही योगदान रहता है लेकिन यह भी सच है कि ज्यादातर मामलों में हालात बिगड़ते भी परिवारवालों से कहासुनी की वजह से ही हैं.