अपराध की कई शाखाएं हैं जिन्हें हम मुख्यतः दो श्रेणियों, अप्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष अपराध में बांट सकते हैं. हत्या, लूटपाट, चोरी, डकैती, बलात्कार आदि मामले जहां हमेशा से आपराधिक श्रेणियों में गिने जाते रहे हैं वे प्रत्यक्ष एवं घरेलू हिंसा, भ्रूण हत्या, मानसिक प्रताड़ना आदि जो हमारे संविधान में सामाजिक हित व न्याय के उद्येश्य से बाद में आपराधिक श्रेणी में शामिल किये गये, अप्रत्यक्ष अपराधों में गिने जा सकते हैं. इन अपराधों के लिये सजा और अपराध के पैमाने पूरे भारत में समान हैं. ऐसा नहीं कह सकते कि अगर देश की राजधानी दिल्ली में कोई हत्या या बलात्कार का मामला होता है तो यह अधिक आपराधिक है और अगर छोटे से राज्य हिमाचल प्रदेश में होता है तो यह कम महत्वपूर्ण है. सच तो यह है अपराध और अपराधियों का किसी समाज, क्षेत्र या राष्ट्र से कोई नाता नहीं होता, वह तो स्वभाव से ही हिंसक है, आपराधिक है. अपवाद को छोड़ दिया जाये तो लगभग सभी आपराधिक मामलों में अपराधी महज थोड़े से स्वार्थ के लिये कथित अपराध को अंजाम देता है. ऐसे में किसी के निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिये हम उसके क्षेत्र को जिम्मेदार कैसे मान सकते हैं?
बातों को न घुमाते हुए आज के कुछ घटित मुद्दों पर आते हैं. आज बिहार की आपराधिक प्रवृत्ति (वसंत कुंज और गांधी नगर बलात्कार मामला) की चर्चा जोरों पर है. खासकर दिल्ली में कई लोगों का गुस्सा इस हद तक है कि वे सभी बिहारियों को यहां से निर्वासित करना चाहते हैं. पिछ्ले कुछ वर्षों के रिपोर्ट खंगालें तो महाराष्ट्र में राज ठाकरे कभी आसामियों, तो कभी बिहारियों के विरुद्ध अभियान के लिये खासे चर्चा में रहे. जहां तक बात है बलात्कार मामलों की तो राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2011 में कुल 24, 206 बलात्कार के मामले सामने आये. ये वे रिकॉर्ड हैं जो दर्ज हुए और प्रकाश में आये, वरना इनके अलावे ऐसे भी कई केस हैं जो या तो दर्ज कराये नहीं जाते या फिर भ्रष्ट पुलिस द्वारा दर्ज करने से इनकार कर दिये जाते हैं. इन 24 हजार मामलों में सबसे कम बलात्कार के मामले उत्तर प्रदेश और बिहार में पाये गये. दिल्ली और असम इस मामले में सबसे असुरक्षित पाए गए.
अब इन भयावह आंकड़ों को हम क्या कहें. खास बिहार के आंकड़े लें तो यहां 2006 में 1232 बलात्कार मामलों से घटकर यह 934 के आंकड़े पर पहुंच गया, जबकि कई राज्यों में यह संख्या लगातार बढ़ती रही है. तो क्या बिहार एक आदर्श राज्य मान लिया जाय जिससे बाकी राज्यों को प्रेरणा लेनी चाहिये और यह जानकर हम मान लेंगे कि बिहारी बहुत अच्छे होते हैं? नहीं, हम ऐसा नहीं कह सकते क्योंकि अपराध कम हों या ज्यादा, कहीं पर भी हों, किसी भी रूप में हों, किसी के भी द्वारा हो, अपराध तो अपराध होता है. किसी व्यक्ति विशेष द्वारा किया गया अपराध न तो उसके राज्य के अपराधी होने का सबूत है और न ही किसी व्यक्ति विशेष के  मासूम होने से उसके राज्य के सभी लोगों के मासूम और हर आपराधिक प्रवृत्ति से मुक्त और सुरक्षित होने का सबूत है. यह एक सोशल बिहैवियर की समझ है, जिसकी नासमझी हो सकता है लोगों में न चाहते हुए भी आपराधिक प्रवृत्तियों का जनक बन जाये.
हमें आध्यात्म की इस बात को समझना चाहिये कि घृणा हमेशा घृणा ही पैदा करेगी. अगर कोई बिहारी या किसी और राज्य का व्यक्ति दिल्ली या किसी और राज्य में किसी अपराध को अंजाम देता है तो वह उसका निजी कृतित्व है, न कि उसने राज्य हित में ऐसा किया होता है. हम क्यूं भूल जाते हैं कि आखिरकार देश राज्यों से, राज्य जिलों से, जिला मुहल्लों से और हर मुहल्ला एक परिवार से बना है. हर परिवार का हर इंसान उस मुहल्ले, जिले, राज्य और देश का निर्माता है. राज्य केवल भूगोल का एक हिस्सा है जो हमारे ही हितों के लिये सीमाओं में बांधा गया है. इसका मतलब यह नहीं होता कि हम किसी के निजी कृतित्व के लिये उसके राज्य को दोषी मान लें. इसका परिणाम ऐसे अपराधों में कमी तो नहीं लायेगा लेकिन हां, अपनी जिम्मेदारियों से, समाज को देखने के अपने बीमार नजरिये में बदलाव की जरूरत से भागने की हमारी सोच को जरूर सामने लाता है और भविष्य में ऐसे अपराधों में सुधार की अपेक्षा और बढ़ोत्तरी निश्चित कर देता है.
 
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