विकास गुप्ता, कोलकाता

पुलिसवालों से अगर पूछें कि आपकी फेवरिट फिल्म कौन सी है, तो अधिकतर कहेंगेसिंघम, क्योंकि फिल्म में जब विलेन के सामने बाजीराव सिंघम कहता है अटा माझी सटकली, तो वे भी अपने रौब में आ जाते हैं, सीना चौड़ा हो जाता है. लेकिन पश्चिम बंगाल में वर्दीवालों को यह एहसास सिर्फ सिनेमा देखने के दौरान ही होता है, तभी तो जब जो चाहे पीट कर चला जाता है. थाने में घुस कर धमकी व अपशब्द सुना जाता है. ये सिंघम के दीवाने गोली-बम की मार भी ङोल जाते हैं और  कार्रवाई करने से पहले अपराधी की औकात पूछ लेते हैं कि कहीं उसकी पहुंच किसी नेता, मंत्री या मुख्यमंत्री तक तो नहीं. क्या पता गिरफ्तार कर ले गये तो कहीं सीएम स्वयं थाने ना आ पहुंचे और अपशब्दों से इज्जत उतार जायें. या फिर फोन पर ही कोई माई-बाप ना आ टपके. जी हां, नयी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही यह आलम है. हाल ही में एक पार्षद ने अपने समर्थकों के साथ मिल कर ट्रैफिक सर्जेट के साथ वहां मौजूद पुलिसवालों की पिटाई कर दी, क्योंकि उन्होंने नो पार्किग जोन में खड़ी टैक्सी पर केस दर्ज किया था. जब मार खाकर पुलिसवाले थाने पहुंचे तो उस पार्षद का नाम दर्ज करने में डिपार्टमेंट के घंटों तक पसीने छूट गये. इसी दिन लेक में प्रतिबंधित पटाखे छोड़ने से मना करने पर स्थानीय क्लब के सदस्यों ने भी पुलिसवालों को पीट दिया. दिवाली के दिन भी पर्णश्री में पुलिसवाले पिटे थे. दुर्भाग्यजनक बात यह है कि इन मामलों में किसी की भी गिरफ्तारी नहीं हुई. दरअसल वर्दीवालों में चुप रहने और मार खाने की लत नयी सरकार के सत्ता में आने के बाद से लगी. इसकी शुरुआत स्वयं मुख्यमंत्री ने की थी, जब वह आधी रात को भवानीपुर थाने पहुंचीं थीं और पुलिसवालों को फटकारते हुए मारपीट और हंगामा करने में गिरफ्तार आरोपियों को छुड़वा ले गयी थीं. इसके बाद से यह सिलसिला आम होता चला गया. कहीं मुख्यमंत्री के भतीजे ने बुजुर्ग पुलिसवाले को थप्पड़ जड़ दिया, तो कहीं कॉलेज के बाहर राजनीतिक झड़प के दौरान पुलिसवाले को गोली मार दी गयी. जब पुलिस आयुक्त ने कार्रवाई का आर्डर दिया तो तबादला कर दिया गया. इसी तरह सिलीगुड़ी में पुलिस आयुक्त ने घपले के आरोपी डीएम को गिरफ्तार किया तो 24 घंटे में आयुक्त का तबादला कर दिया गया. कोलकाता पुलिस के कुछ वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि सिंघम से बड़ा शेर हमारे डिपार्टमेंट में हैं, लेकिन जिसने भी राजनैतिक पार्टियों से उलझने की कोशिश की या उनके खिलाफ कार्रवाई करने का जिगर दिखाया उनके सर्विस कैरियर में काला दाग लगा कर उनका प्रमोशन रोक दिया गया. साहब, फिल्मों में इस तरह के रोल को प्ले करते पुलिसवालों को देखने में अच्छा लगता है, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं कर पाते, क्योंकि सत्ताधारी के खिलाफ कार्रवाई करने पर ये निजी जिंदगी में हमला शुरू कर देते हैं.
बहरहाल, पुलिसवालों को जनता पर अत्याचार करनेवालों को सबक सिखायें न सिखायें. कम से कम अपने लोगों पर हमला करनेवालों को तो मजा चखाना ही चाहिये. 
 
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