सुधा अरोड़ा
मां की कोख से बाहर आते ही , जैसे ही नवजात बच्चे के रोने की आवाज आई , सास ने दाई का मुंह देखा और एक ओर को सिर हिलाया जैसे पूछती हो - क्या हुआ ? खबर अच्छी या बुरी ।
दाई ने सिर झुका लिया - छोरी ।
अब दाई ने सिर को हल्का सा झटका दे आंख के इशारे से पूछा - काय करुं ?
सास ने चिलम सरकाई और बंधी मुट्टी के अंगूठे को नीचे झटके से फेंककर मुट्ठी खोलकर हथेली से बुहारने का इषारा कर दिया - दाब दे !
दाई फिर भी खड़ी रही । हिली नहीं ।
सास ने दबी लेकिन तीखी आवाज में कहा - सुण्यो कोनी ? ज्जा इब ।
दाई ने मायूसी दिखाई - भोर से दो को साफ कर आई । ये तीज्जी है , पाप लागसी ।
सास की आंख में अंगारे कौंधे - जैसा बोला , कर । बीस बरस पाल पोस के आधा घर बांधके देवेंगे , फिर भी सासरे दाण दहेज में सौ नुक्स निकालेगे और आधा टिन मिट्टी का तेल डाल के फूंक आएंगे । उस मोठे जंजाल से यो छोटो गुनाह भलो।
दाई बेमन से भीतर चल दी । कुछ पलों के बाद बच्चे के रोने का स्वर बंद हो गया ।
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बाहर निकल कर दाई जाते जाते बोली - बीनणी णे बोल आई - मरी छोरी जणमी ! बीनणी ने सुण्यो तो गहरी मोठी थकी सांस ले के चद्दर ताण ली ।
सास के हाथ से दाई ने नोट लेकर मुट्ठी में दाबे और टेंट में खोंसते नोटों का हल्का वजन मापते बोली - बस्स ?
सास ने माथे की त्यौरियां सीधी कर कहा - तेरे भाग में आधे दिन में तीन छोरियों को तारने का जोग लिख्यो था तो इसमें मेरा क्या दोश ?
सास ने उंगली आसमान की ओर उठाकर कहा - सिरजनहार णे पूछ । छोरे गढ़ाई का सांचा कहीं रख के भूल गया क्या ? ...... और पानदान खोलकर मुंह में पान की गिलौरी गाल के एक कोने में दबा ली ।