राहुल कोलकाता
शतदीपा 14 साल की थी और अभिजीत 16 का. दोनों ही अपने-अपने माता-पिता के बडे. लाडले थे. लेकिन दो मई को दोनों ने फंदा लगा कर खुदकुशी कर ली. फंदे में लाडले को देख माता-पिता मूर्छित से हो गये. लाडले की सूरत देख कुछ पल की घुटन के बाद चीत्कार करने लगे. उन्हें दुलारने को आतुर सीना फटा जा रहा था. पर उनमें कोई सुगबुगाहट न थी, क्योंकि कलेजे का टुकड.ा हमेशा के लिए सो गया था. इसके साथ ही उनमें बो को खो देने की व्यथा अपराधबोध, घृणा और विवशता के रूप में हमेशा के जेहन में बस गया, जिससे उबरना आसान नहीं होता. यहां सवाल है, की उम्र में दोनों ने खुदकुशी क्यों कर ली? इसका जवाब ढूंढ. निकालना हर माता-पिता के लिए जरूरी होगा.बताया गया कि ग्यारहवीं कक्षा के अभिजीत के पिता सब्जी बिक्रेता हैं और मां दूसरों के घर में चौका-बर्तन करती है. अक्सर उससे बहुत कठिन परिस्थिति में पढ.ाने की बात कह कर पढ.ाई में अव्वल रहने की बात कही जाती थी. वह भी अच्छे नंबर लाता रहा. इसके साथ ही घरवालों की उम्मीद भी बढ.ती गयी. लेकिन ग्यारहवीं का नया सिलेबस समझ में न आने से परीक्षा में खराब प्रदर्शन होने और घरवालों की उम्मीद पर खरा न उतरने का डर सताने लगा. अंतत: घरवालों की उम्मीदों को टूटता देख बो ने दम तोड. दिया. शतदीपा के पिता पुलिस अधिकारी हैं. उसकी खुदकुशी की वजह पढ.ाई और घरेलू तनाव माना जा रहा है.
क्या है बाों में खुदकुशी की वजह
मनोचिकित्सकों की मानें तो, बो मासूम होते हैं. उनका रूठना और मान जाना क्षणिक भर का होता है. लेकिन आधुनिक होने के चक्कर में कहीं न कहीं उन्हें समय से पहले बड.ा बनाने की कोशिश की जा रही है. उनके चंचल मन को गंभीर बनाने की कोशिश से उनमें खुदकुशी जैसी प्रवृत्ति बढ. रही है. पढ.ाई के बोझ और सुबह से शाम तक रूटीन में बंध कर बो उलझनों और समस्याओ में डूबते जा रहे हंै. स्कूल से भारी बस्ते और ढेर सारा होमवर्क, घर में माता-पिता की अधिक से अधिक महत्वाकांक्षाएं, जिसे पूरा करने में बो थक जाते हैं. बच्चों को सुपर किड बनाने की अभिभावकों एवं शिक्षकों की जिद्द भावी कर्णधारों को मानिसक बीमारियों का शिकार बना रही है और जिससे खुदकुशी की घटनाएं बढ. रही हैं.
शिक्षिका मौमिता दे दास के मुताबिक, आज के समय में छात्रों में बढ. रहे मानसिक तनाव व मानसिक रोग भी आत्महत्या जैसी घटनाओं में वृद्धि के कारण हैं. यह पाया गया है कि मानसिक समस्याओं से परेशान 25 फीसदी लोगों के दिमाग में आत्महत्या का ख्याल आता है. आत्महत्या के मामले बढ.ने का मुख्य कारण परिवार, समाज या कार्यक्षेत्र से जुड.ा तनाव होता है. वहीं युवाओं में यह प्रवृत्ति बढ.ने की वजह तनाव न सह पाना है. आत्महत्या की एक बड.ी वजह स्कूल और परिवार का दबाव है.
अध्यापक श्यामलाल उपाध्याय बताते हैं कि आज अभिभावक अपने बच्चों को लेकर महत्वाकांक्षी हो गए हैं. वे चाहते हैं कि उनका बच्चा रातों रात सुपर स्टार बन जाए लेकिन इस दबाव से बचपन खोता जा रहा है. अभिभावक अपने अधूरे सपनों को बच्चों के माध्यम से पूरा करना चाहते हैं और वे बच्चों पर इतने दवाब लाद देते हैं कि बच्चे मानिसक तौर पर टूट जाते हैं और वे घोर तनाव तथा डिप्रेशन से घिर जाते हैं और इसकी परिणति आत्महत्या के रूप में होती है.
मनोचिकित्सक दीपक कुमार बताते हैं कि करीब 80 प्रतिशत आत्महत्याएं पूर्व संकेत के बाद होती हैं. कुछ आत्महत्यायें क्षणिक आवेग में भी होती हैं, किंतु अधिकतर आत्महत्यायें एक लंबी प्रक्रि या का परिणाम होती हैं. उन्होंने आवेग में आकर या भूलवश ऐसा किया होगा बल्कि उनकी समस्याओं को समझने और उनके समाधान करने की कोशिश की जानी चाहिए.
होम टय.ूटर पूनम जायसवाल का कहना है, पिछले कुछ समय में आर्थिक कारणों से अधिक से अधिक संख्या में महिलायें नौकरी-रोजगार के कारण ज्यादातर समय घर से बाहर रहने लगी हैं, जिसके कारण बच्चों में एकाकीपन बढ. गया है. माता-पिता की व्यस्तता तथा अन्य कारणों से बच्चों एवं माता-पिता के बीच संवादहीनता की स्थिति बढ. रही है. इसके कारण न तो बच्चे अपने मन की बात को माता-पिता को बता पाते हैं और न ही माता-पिता के पास अपने बच्चों के मन को समझने के लिए समय बचा है. इस कारण बच्चे अकेले हो जाते हैं. दूसरी तरफ माता-पिता की अपने बच्चों से उम्मीदें इतनी बढ. गयी है कि औसत दर्जे के बच्चे इस अपराध बोझ से ग्रस्त रहते हैं कि वे अपनी मां-बाप की उम्मीदें पूरी नहीं कर पा रहे हैं.
अभिभावक मनोरमा झा के मुताबिक, बच्चे से लगातार टच में बने रहना बहुत ही जरूरी है. उनकी सोच, उनकी समझ को शेयर करना. अगर ऐसा न हो रहा हो तो यह खतरे की घंटी बन जाती है. पेरेंट्स और बच्चों के बीच में कम्युनिकेशन अच्छा होना बहुत ही जरूरी है. अभिभावक कल्पना चौधरी का कहना है कि बच्चे को सभी माता-पिता पूरी तरीके से सहायता करने की कोशिश करते हैं पर वह अपने उम्र से ज्यादा एडवांस हो चुका है क्योंकि पहले के जमाने में लोग खाली समय में अपने माता-पिता के साथ बैठ कर उनसे अपनी बातें शेयर किया करते थे. पर आज उन्हें खाली समय में कम्प्यूटर के सिवा और कुछ भी सूझता ही नहीं है वे टेक्नोसैवी हो चुके हैं. जरा सा भी ज्यादा पूछ ताछ करने पर वे रूठ जाते हैं