राहुल मिश्र, कोलकाता
मौसम के साथ मिजाज का बदलना स्वाभाविक है. चुनावी मौसम में चुनाव की बात न हो, त्योहार के मौसम में त्योहार की और खेल के मौसम में खेल की न हो तो ऐसा अप्राकृतिक ही कहलायेगा. ये तो मौसम का ही जादू है कि इन दिनों रवींद्र सरोवर में भी कमल के फूल ही पूरे रौब से खिले हुए हैं. देश का राजनीतिक मौसम भी कमल फूल के खिलने का ही है. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव में कल्पना के परे प्रदर्शन किया. वर्षो बाद किसी एक पार्टी को बहुमत मिला. ऐसे में जहां चार लोग जुटे, वहां यह चर्चा का विषय न रहे तो यह भी बड़ी चर्चा का विषय बन सकता है.
दरअसल, सरोवर में कमल फूल के खिलने को राजनीतिक माहौल से जोड़ने का तुक बने न बने, लेकिन रवींद्र सरोवर के पास के पार्को में प्राकृतिक सुख लेने आनेवालों को देश के वर्तमान माहौल पर चर्चा करते पाया जाना आम बात है. यहां चर्चा करनेवालों में कई मोदी तो कुछ दीदी के समर्थक भी होते हैं. नयी सरकार बन रही है, तो सरकार या प्रधानमंत्री क्या करेंगे. किस मुद्दे को कैसे निबटायेंगे. यह मुख्य विषय रहता ही है. पिछले दिनों मार्निग वाकर्स का एक समूह ऐसी ही चर्चा में व्यस्त था, तो पास से गुजर रहे सांसद महोदय को उनकी बातें चुभ सी गयी. अभी-अभी उनकी चुनाव की व्यस्तता खत्म ही हुई थी. लोकसभा चुनाव के दौरान मशक्कत भी इस बार अधिक करनी पड़ी थी. ऐसे में विरोधियों के पक्ष में कोई बात कैसे हजम हो सकती है. सांसद ने अपनी नाराजगी अपने तेवर और ताकत के साथ दिखाया ही. धमकियां भी दे डालीं. भीड़ जुटी. दमदार बहस हुई. पुलिस तक मामला चला गया. हालांकि नेताजी की ताकत का एहसास अगले दिन से लोगों को होने लगा. पुलिस की नजरदारी बढ़ गयी. सांसद भी बंदूकधारी पुलिसवालों के साथ नजर आने लगे. फिर भी सांसद की मौजूदगी में चुप-चुप कहते लोग परोक्ष में अपनी अभिव्यक्ति को और मजबूती से व्यक्त कर रहे होते हैं. उनका साफ संदेश यही है कि स्वतंत्र भारत में जनता की आवाज को दबाने की कोशिश किसी भी नेता व पार्टी के लिए लाभदायक नहीं हो सकता.
 
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