राहुल मिश्र, कोलकाता
पाकिस्तानियों से हमदर्दी से देशद्रोह का ख्याल आता है क्या? क्या 26/11, जवानों के कटे सिर, कारगिल, ढेरों आतंकी हमले, देश का बंटवारा, कश्मीर आदि जेहन में आते हैं. गुस्सा आता है क्या? अगर ऐसा है तो गुस्से पर रहमदीली को हावी हो जाने दें और कुछ देर के लिए हमदर्द बन जाइये. जरा, पाकिस्तान का माहौल और वहां रह रहे करीब 16 करोड़ हम आप की तरह आम लोगों के बारे में सोचते हैं, कि क्या वे हमारी तरह ही तो होंगे ना ?
दरअसल, पाकिस्तान से रोज-रोज आ रहीं आतंकी हमलों में मरने की खबरों ने थोड़ा सोचने को मजबूर किया है. सिर्फ इतना ही नहीं खुद के नजरिया और इनसानियत को लेकर भी मन में कई सवाल सामने खड़े हो गये. खबर आयी कि पाकिस्तान की राजधानी इसलामाबाद में हमलावरों ने अंधाधुंध गोलीबारी की और ग्रेनेड फेंका. इसमें न्यायाधीश समेत 11 लोगों की मौत हो गयी, जबकि 25 लोग घायल हो गये. अंधाधुंध गोलीबारी करीब 15 मिनट तक चली. 26/11 की तरह ही नजारा होगा. इंटरनेट पर खंगालने पर पता चला कि इस वर्ष एक जनवरी से लेकर 23 फरवरी तक इन 54 दिनों में वहां विभिन्न जगहों पर 68 बड़े आत्मघाती हमले हुए. इसमें करीब 600 लोग मारे गये और उतने ही लोग अस्पतालों में मौत से जूझ रहे हैं. 23 फरवरी के बाद से अदालत में हमले तक और भी लोग मरे हैं. इनमें कुछ हमलावर भी हैं. कई सुरक्षाकर्मी भी हैं और अधिकतर आम लोग हैं. कई हमलावर तो खुद को ही बम से उड़ा लिये. कई सुरक्षाबलों के हाथों मारे गये. पाकिस्तान हमारे देश से काफी छोटा है और आजादी तक हमारा हिस्सा था. बंटवारा हो गया. बंटवारे की वजह राजनैतिक ही होगी. लोग इधर-उधर आये-गये. कइयों की चाहत और मजबूरी भी होगी. हमलों के पीछे की वजहें भी राजनैतिक ही होंगी. भले ही उस पर धार्मिक तड़का लगा दिया गया है. उद्देश्य सत्ता ही होगा. सत्ता के लिए ही चंद लोग बांटते हैं, जमीन भी, दिल भी. ये भावनाएं ही हैं, जिसे टटोला जाता है. जब दोस्त और दुश्मन की बातें करके नफरत का बीज बोया जाता है. अपनों के बहाने वे दूसरों की जान लेने और देने को उतारू हो जाते हैं. दोनों तरफ ही लोग मरते और पिसते रहते हैं. सोचिए, ऐसा माहौल कौन चाहेगा. हमारी तरह वहां के आम लोग भी अपने परिवार के साथ हंसी खुशी जीना तो चाहते ही होंगे ना. हमारे यहां अभी चुनावी माहौल है. ऐसे में पाकिस्तानियों से हमदर्दी की बात करना संवेदनशील हो सकता है. अंत में खुद के सवालों का जवाब यही मिला कि ईश्वर ने पृथ्वी, प्रकृति और इनसान बनाया. बाद में हमने धर्म, जाति, देश बनाया. इसी लिए प्राथमिकता इनसानियत को देनी चाहिए और कहीं दर्द हो तो उनसे हमदर्दी होनी ही चाहिए. मुझसे असहमति के कई तर्क होंगे, लेकिन मेरी तरह दिल से जवाब मांगिये, शायद आपके तर्क कमजोर पड़ जायें.
पाकिस्तानियों से हमदर्दी से देशद्रोह का ख्याल आता है क्या? क्या 26/11, जवानों के कटे सिर, कारगिल, ढेरों आतंकी हमले, देश का बंटवारा, कश्मीर आदि जेहन में आते हैं. गुस्सा आता है क्या? अगर ऐसा है तो गुस्से पर रहमदीली को हावी हो जाने दें और कुछ देर के लिए हमदर्द बन जाइये. जरा, पाकिस्तान का माहौल और वहां रह रहे करीब 16 करोड़ हम आप की तरह आम लोगों के बारे में सोचते हैं, कि क्या वे हमारी तरह ही तो होंगे ना ?
दरअसल, पाकिस्तान से रोज-रोज आ रहीं आतंकी हमलों में मरने की खबरों ने थोड़ा सोचने को मजबूर किया है. सिर्फ इतना ही नहीं खुद के नजरिया और इनसानियत को लेकर भी मन में कई सवाल सामने खड़े हो गये. खबर आयी कि पाकिस्तान की राजधानी इसलामाबाद में हमलावरों ने अंधाधुंध गोलीबारी की और ग्रेनेड फेंका. इसमें न्यायाधीश समेत 11 लोगों की मौत हो गयी, जबकि 25 लोग घायल हो गये. अंधाधुंध गोलीबारी करीब 15 मिनट तक चली. 26/11 की तरह ही नजारा होगा. इंटरनेट पर खंगालने पर पता चला कि इस वर्ष एक जनवरी से लेकर 23 फरवरी तक इन 54 दिनों में वहां विभिन्न जगहों पर 68 बड़े आत्मघाती हमले हुए. इसमें करीब 600 लोग मारे गये और उतने ही लोग अस्पतालों में मौत से जूझ रहे हैं. 23 फरवरी के बाद से अदालत में हमले तक और भी लोग मरे हैं. इनमें कुछ हमलावर भी हैं. कई सुरक्षाकर्मी भी हैं और अधिकतर आम लोग हैं. कई हमलावर तो खुद को ही बम से उड़ा लिये. कई सुरक्षाबलों के हाथों मारे गये. पाकिस्तान हमारे देश से काफी छोटा है और आजादी तक हमारा हिस्सा था. बंटवारा हो गया. बंटवारे की वजह राजनैतिक ही होगी. लोग इधर-उधर आये-गये. कइयों की चाहत और मजबूरी भी होगी. हमलों के पीछे की वजहें भी राजनैतिक ही होंगी. भले ही उस पर धार्मिक तड़का लगा दिया गया है. उद्देश्य सत्ता ही होगा. सत्ता के लिए ही चंद लोग बांटते हैं, जमीन भी, दिल भी. ये भावनाएं ही हैं, जिसे टटोला जाता है. जब दोस्त और दुश्मन की बातें करके नफरत का बीज बोया जाता है. अपनों के बहाने वे दूसरों की जान लेने और देने को उतारू हो जाते हैं. दोनों तरफ ही लोग मरते और पिसते रहते हैं. सोचिए, ऐसा माहौल कौन चाहेगा. हमारी तरह वहां के आम लोग भी अपने परिवार के साथ हंसी खुशी जीना तो चाहते ही होंगे ना. हमारे यहां अभी चुनावी माहौल है. ऐसे में पाकिस्तानियों से हमदर्दी की बात करना संवेदनशील हो सकता है. अंत में खुद के सवालों का जवाब यही मिला कि ईश्वर ने पृथ्वी, प्रकृति और इनसान बनाया. बाद में हमने धर्म, जाति, देश बनाया. इसी लिए प्राथमिकता इनसानियत को देनी चाहिए और कहीं दर्द हो तो उनसे हमदर्दी होनी ही चाहिए. मुझसे असहमति के कई तर्क होंगे, लेकिन मेरी तरह दिल से जवाब मांगिये, शायद आपके तर्क कमजोर पड़ जायें.