कोलकाता
की सुजैट जोर्डन आज सरवाइवर्स फॉर विक्टिम्स ऑफ सोशल जस्टिस नाम की
हेल्पलाइन में बलात्कार की शिकार हुई महिलाओं के लिए काम करती हैं. सुजैट
जोर्डन बलात्कार जैसे घृणित अपराध की शिकार हुई वह हिम्मती महिला हैं जिसने
इसे छिपाया नहीं. शादीशुदा सिंगल मदर सुजैट दो बच्चियों की मां हैं. 11
साल पहले उनका उनके पति से अलगाव हो गया था. कोलकाता के एक नाइट क्लब से
निकलते हुए चलती कार में पूरी रात उनका बलात्कार किया गया पर जब उन्होंने
इसकी शिकायत की तो कोलकाता सरकार ने इसे उसकी छवि खराब करने की साजिश बताई.
पार्क स्ट्रीट में हुए इस अपराध की शिकार सुजैट ने बड़ी ही हिम्मत से इसका
सामना किया. दो बेटियों की मां सुजैट को इसके बाद कोलकाता का अपना घर छोड़
देना पड़ा क्योंकि लोग उन्हें लेकर तरह-तरह की बातें बनाते थे. क्योंकि यह
नाइट क्लब से निकलते हुए हुआ तो सुजैट के चरित्र को लेकर ही लोग तरह-तरह की
बातें करते थे. सुजैट ही नहीं उनकी बेटियां भी बिना किसी गुनाह के सजा
भुगतने को मजबूर हैं. इन सबसे तंग आकर सुजैट ने कई बार आत्महत्या करने की
भी सोची पर उनकी बेटियों ने उन्हें हिम्मत दी. सुजैट का केस आज भी फास्ट
ट्रैक कोर्ट में चल रहा है. कोर्ट से शायद उन्हें कभी न्याय मिल भी जाय पर
क्या समाज की उनके प्रति यह सोच, ये ताने उन्हें कभी इस जुल्म के साए
निकलने देगा? शायद नहीं.
यह कहानी
मात्र सुजैट की नहीं है. ऐसी कई कहानियां समाज में भरी पड़ी हैं. एक तो
महिलाएं जुल्म की शिकार होती हैं, उस पर समाज उनके चरित्र को लेकर ही बातें
बनाकर उनका जीना मुश्किल कर देता है. परिणाम होता है कि अपने साथ के इस
दर्द के साए को वे ताउम्र झेलने को मजबूर होती हैं. बलात्कार के मामलों में
यह अक्सर देखा जाता है कि लोग लड़की के चाल-चलन, उसके रहन-सहन को लेकर ही
बातें बनाने लगते हैं. यही कारण है कि मां-बाप और परिवार वाले भी ऐसे किसी
हादसे की रिपोर्ट नहीं करना चाहते. शर्मनाक काम किसी और ने किया, पर अपनी
इज्जत डूबने का डर उन्हें सताता है. परिणाम होता है अपराधी खुलेआम घूमते
हैं और ऐसे और भी अपराध बेधड़क करते हैं. इसी का परिणाम होता है कि मां-बाप
हर बात पर बेटियों को इज्जत की नसीहत देते हैं, जैसे मां-बाप की इज्जत का
बोझ उन्होंने ही अपने कंधों पर उठाया हुआ हो. यही सोच समाज में लड़कियों की
सामाजिक उन्नति में अवरोधक का काम करता है.
बात यहां
सिर्फ बलात्कार की नहीं है. इसके अलावे भी कई ऐसे अपराध हैं जो औरत के साथ
होते हैं पर वह झेलती है इस डर से क्योंकि समाज उसके चरित्र को लेकर बातें
बनाएगा. अगर औरत का पति से तलाक हो गया तो औरत में ही कोई कमी होगी, अगर
औरत ने आत्महत्या कर ली तो उसने कुछ गलत किया है, अगर औरत को पति ने घर से
निकाल दिया तो उसी का चरित्र खराब होगा, अगर पति औरत को पीटता हो तो उसी का
कोई दोष होगा, अगर औरत पति के खिलाफ पुलिस में शिकायत करने चली गई तो भी
वह घटिया औरत है, जैसी कई बातें हैं जो शायद अब बड़े शहरों में न हों पर
छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में आज भी होता है. कह सकते हैं कि महिलाएं
भी बहुत हद तक खुद इसके लिए जिम्मेदार हैं. क्योंकि यह भी एक बड़ा सच है कि
ऐसी बातें करने वालों में महिलाओं का एक बड़ा वर्ग भी होता है. किसी महिला
के साथ कोई अनहोनी हो गई, तो पुरुषों से पहले समाज की महिलाएं ही उनका
बहिष्कार कर देती हैं, ताने कसती हैं, छींटाकशी करती हैं. क्यों होता है
ऐसा? इसलिए क्योंकि उनके साथ यह सब गुजरा नहीं. जिस दिन ताना कसने वाली
महिलाओं में से किसी के भी साथ ऐसी कोई अनहोनी हो जाती है, वे भी उस भीड़ से
अलग-थलग पड़ जाती हैं और तब उन्हें ऐसी महिलाओं का दर्द समझ आता है. पर तब
तक बहुत देर हो चुकी होती है. इस तरह यह सिलसिला चलता रहता है. महिलाएं ही
महिलाओं का दर्द नहीं समझतीं. महिलाएं ही महिलाओं की दुश्मन बन जाती हैं और
जब खुद पर विपदा आती है तो न्याय और समाज की ओछी सोच नजर आने लगती है. ऐसा
क्यों? इससे पहले उन्हें यह दर्द समझ क्यों नहीं आता?
सारे
फसाद की जड़ यही सोच है. यह सच है कि महिलाओं की सोच सारे समाज की सोच नहीं
है. पर यह भी सच है कि महिलाओं की सोच आज समाज के एक बड़े वर्ग की सोच है और
एक बड़े वर्ग की सोच को प्रभावित भी करती है. अगर महिला ही महिला की दुश्मन
बन जाए तो उसका जीना और भी दूभर हो जाता है. इसका मतलब यह नहीं कि महिलाएं
कभी गलतियां नहीं करतीं और उनकी बात के लिए आंदोलन कर दिया जाए. पर सही और
गलत का दायरा हर जगह होता है. बस उसी दायरे, उसी फर्क के आधार पर एक
न्यायिक सोच अपनानी होगी. यह सोच महिलाओं को स्वयं भी अपनाना होगा और युद्ध
स्तर पर बाकी समाज की सोच को भी बदलने के लिए प्रयासरत होना होगा. पर इसके
लिए सबसे पहले जरूरी है अपनी सोच बदलना.